धर्म-कर्म : किस्से कहानियों से गहरी बातें समझाने वाले, काल के देश में कर्मों के कर्जे और लेन-देन के रिश्ते की गुत्थी को सुलझाने वाले, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि, दिखावे की भक्ति नहीं करनी चाहिए। भक्ति पूरे मन और श्रद्धा से की जाती है।

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बाबा जी ने कहा कि, बहुत से लोगों को इस बात की शंका रहती है कि हम भी भगत हैं, लेकिन हमारे मन की बात क्यों नहीं होती है। हमको यह लाभ, फायदा होना चाहिए। लेकिन लेना-देना कैसा कहां है, यह तो सब समझ में नहीं आता है। जब दुनिया की तरफ से अपने मोह को थोड़ा भंग करोगे, तब उस मालिक गुरु पर विश्वास करोगे और भक्ति लाओगे, उसके ऊपर सर्वस्व लुटाने की कोशिश करोगे, न भी लुटा पाओ लेकिन मन में तो भाव इस तरह के रखोगे तभी आपका काम बन सकता है।

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