धर्म कर्म: आदि से अंत तक सब कुछ जानने वाले सर्वज्ञ, कर्मों की सजा से बचने का उपाय बताने वाले, सर्व समर्थ, सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि इस देश की यह परंपरा रही है, ज्यादातर सन्त यहीं पर हुए हैं। अवतारी शक्तियां तो और जगहों पर भी हुई हैं। अवतारी शक्ति किसको कहते हैं? जो नीचे के स्थान से आती हैं, परिवर्तन बदलाव करने के लिए, उसके बनाई हुए सृष्टि की रखवाली करने के लिए आते हैं। वह भी सृष्टि के रखवाले ही होते हैं कि यहां पर जीव रह जाए, नरकों में न जाने पावे। अभी यदि सभी जीवों को नरकों में भेज दिया जाए या दुनिया के सभी लोगों को जेल में बंद कर दिया जाए तो कौन खेती, दुकान, यह व्यवस्था संभालेगा? इसलिए इन सारी चीजों का रहना जरूरी है। काल भगवान ने समय-समय पर उनको भेजा कि सब जीव नर्कगामी न होने पाए, इनको रोको, उसी में उलझाए रहो ताकि कुछ मनुष्य शरीर में भी रहे, नहीं तो कैसे व्यवस्था चलेगी। अकल बुद्धि वाला केवल मनुष्य होता है। पांचों तत्व केवल मनुष्य शरीर में होते हैं। आकाश तत्व की कमी होने से बुद्धि सही से काम नहीं करती। पशु, मनुष्य के समान बच्चा पैदा करते हैं, इस तरह खाते, पीते, चलते हैं लेकिन उनमें बुद्धि नहीं होती तो जानवरों को हांकना, चराना पड़ता है, कुत्ते को सिखाना पड़ता है। मनुष्य में बुद्धि होती है, मनुष्य का रहना भी जरूरी था।

जब भी लोग धर्म को खत्म करने के लिए सोचे तब यह शक्तियां आई

अवतारी शक्तियां धर्म की स्थापना करने के लिए आई कि लोग धार्मिक भी रहे। जब अधर्म ज्यादा बढ़ता था, जब भी लोग धर्म को खत्म करने के लिए सोचे तब यह शक्तियां भेजी जाती थी। जो मनुष्य शरीर में आए हैं, उनकी बात छोड़ो, देवताओं की बात देख लो। देवता और असुर यह दो रहे। राक्षसों ने बहुत मेहनत किया। शिव की तपस्या किया था। एक पैर पर ही खड़ा रहा, उसने सर नीचे करके (शीर्षासन) तपस्या किया। लेकिन तपस्या से शिवजी जब खुश हुए तो वरदान मांग लिया। फिर देवताओं पर हमला करने, उन्हें सताने लगा गया। शिवजी वरदान देने की वजह से मजबूर थे। तब उसने सोचा कि हम त्रिलोक के मालिक बनेंगे। तब उसको खत्म करने की योजना विष्णु ने बनाई थी। धार्मिक, पौराणिक किताबों में आपको यह चीज मिलेगी। उसमें भी रहे हैं, उसके लिए भी व्यवस्था बनी है, व्यवस्था के अंतर्गत सब होता है।

भजन करो निकल चलो, यह देश अपना नहीं

लेकिन जो सन्त आते हैं, सन्त किसको कहते हैं? जो आदि और अंत दोनों को जानता है। कहां से सृष्टि की रचना हुई, कब और कैसे खत्म होगी, कैसे सिमटेंगे, इन सारी चीजों की जानकारी जिसको होती है, उनको सन्त कहते हैं, उनको सतगुरु कहा जाता है। प्रेमियो! हमको-आपको गुरु महाराज जैसे सतगुरु मिले, आप बराबर गुरु के आदेश का पालन करो। गुरु के आदेश का पालन ही गुरु भक्ति होती है। बराबर सुमिरन, ध्यान, भजन करते रहो। शरीर को गंदा मत होने दो।

व्यभिचार से दूर रहो

व्यभिचार से दूर रहो। कर्म आते हैं। छूने से, एक-दूसरे की आंखों में देखने से कर्म आते हैं। दूसरे की औरत के ऊपर गलत नजर डालने का काफी असर पड़ता है। उससे संपर्क बनाने में काफी असर पड़ता है, काफी कर्म आते हैं। बच्चियो! समझ लो, परपुरुष से संपर्क बनाने में काफी कर्म आते हैं। उनकी माफी जल्दी नहीं हो पाती है। अच्छे कर्म इस शरीर से नहीं बन पाते हैं कि जो बुरे कर्म आए वो उससे खत्म हो पावे। फिर कर्मों की सजा भोगनी पड़ती है। कर्मों की सजा से इस मृत्यु लोक में कोई बच नहीं पाया।

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