धर्म कर्म: पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त महाराज जी ने चंपारण (बिहार) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि कलयुग में मलीनता, गंदगी ज्यादा आ गई। कहा गया- छूटे न मैल, मैल के धोए। मैल को गंदे पानी से धोओगे तो गन्दगी नहीं छूटेगी। ऐसे ही इस वक्त पर लोग एक तरह से कीचड़ में फंस गए हैं तो अब उनकी सफाई कैसे होगी? कलयुग का मतलब यही है- कालीमा, मलिनता लाना। कलयुग ने कहा- दीमक चढ़ जाय ग्रंथो को, ब्राह्मण पड़तीयां तोड़ें। बधिक हो जाए क्षत्रियगण, शुद्र सेवा से मुख मोड़े। सूखे नदिया धंसे पर्वत, तब विजय हमारी हो।

गृहस्थ धर्म का मतलब समझ नहीं पा रहे लोग इसलिए हैं दु:खी

उस वक़्त ये वर्ण व्यवस्था ऋषि-मुनियों ने बनाया था। जो अच्छा काम करते थे, ब्रह्म को, परमात्मा को जानते थे, उनका साक्षात्कार करते थे, ब्रह्म में विचरण करते थे, उनको लोग ब्राह्मण कहते थे। जो लोगों की रक्षा करते थे, उनको क्षत्रिय कहा जाता था। जो खाने-पीने, पालन-पोषण का इंतजाम करते उनको वैश्य कहा जाता है और जो अन्य सेवाएं कर लिया करते थे उनको शुद्र कहा जाता था। इन सबका धर्म होता था। जैसे ग्रहस्थ का धर्म, जैसे इंसान का धर्म है, ऐसे इन जातियों का धर्म होता है। जब ग्रहस्थ धर्म, मानव धर्म को लोग नहीं समझ पाए तो घर में कलह हो जाता है। लड़ाई-झगड़ा, मार-पीट, खून-कत्ल कर रहे, घर छोड़कर के भाग रहे हैं, बच्चे नालायक निकल गए, औरत मन का कर रही है, बहु मायके चली गई आदि समस्यायें जो अक्सर देखने को मिलती है, इसका मतलब यही है कि गृहस्थ धर्म का मतलब लोग समझ नहीं पा रहे हैं। मानव धर्म क्या है? सबके अंदर जीवात्मा उस मलिक की है, परमात्मा जिसको कहते हैं। उसका अनेक नाम लोगों ने रखे। हर जाति धर्म के मानने वाले लोग हैं, भगवान परमात्मा को मानते हैं। कोई कहता है हमारे अल्लाह बड़े, हमारे राम बड़े, विष्णु बड़े, नानक साहब बड़े हैं। इसी में इंसान का जो धर्म है, जीवों की रक्षा करना, उसका पालन न करके जीवों को मार-काट देते हैं, कत्ल कर देते हैं। हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई अपने-अपने धर्म से अलग होकर के हिंसा-हत्या, पाप करने लगता है, अपने-अपने धर्म से लोग अलग हो गए।

कलयुग के रौद्र रूप की हो गई शुरुआत

कलयुग का रौद्र रूप दिखाई पड़ने लग गया। रौद्र रूप किसको कहते हैं? कहते हैं- अरे भाई, वो तो गुस्से से आपा खो दिए, समझ ही नहीं पा रहे थे कि क्या बोलना चाहिए, हाथ-पैर पटक रहे, यह तो आपे से बाहर हो रहे हैं। उसको कहते हैं रौद्र रूप। मरने-मारने के लिए क्रोध में आ जाता है। अभी तो शुरुआत हुई है, आगे दिखाई पड़ेगा ये कलयुग का। अगर लोग नहीं संभले, कलयुगी ही बने रहे, कलयुग जो चाहता है उसी को अपना रहे तो आगे का समय विनाशकारी, बचे वही जो सदाचारी शाकाहारी नशे से मुक्त होगा, वही बचेगा। बाकी तो- बज रहा काल का डंका, कोई बचने न पाएगा। बचेगा साध जन कोई, जो सत से लौ लगाएगा।। ये महात्मा लोग कह करके चले गए।

कर्मों की मिलती सजा की वजह से इंसान को सुख शांति नहीं मिल रही, अब ऐसे मिलेगी

इस वक्त पर इंसान सुख और शांति खोज रहा है। लोगों को बुरे कर्मों की सजा मिल रही। कहते हैं चोरी की तो पकड़े जाओगे, मार पड़ेगी, जेल जाना पड़ेगा, उसको बुरा मान लिया कि यह बुरा काम है। लेकिन जिसने चोरी कर ही लिया, उसकी माफी कैसे होगी? ये बात तो सब बताते हैं कि बुरा करोगे नरक जाओगे लेकिन नर्क से बचेंगे कैसे? यदि बुरा कर्म हो गया तो उसकी माफी कैसे होगी? यह भी तो बताना जरूरी होता है। सतसंग में ही बचत का उपाय आदि सब बात बताई जाती है। समझो, कीचड़-गंदगी-पाप, कीचड़ से नहीं धुलता बल्कि निर्मल जल से धुलता है। निर्मल जल कहां मिलता है? सतसंग जल जब कोई पावे। मैलाई सब कट कट जावे।। सतसंग जब मिलता है तब हर तरह की जानकारी हो जाती है, तब यह गंदगी साफ होती है।

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