धर्म- कर्म: निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि जो जिसके लायक था, जिसके अंदर जैसी भाव भक्ति, श्रद्धा, प्रेम, लगन और मेहनत थी, उसी हिसाब से गुरु महाराज ने उन्हे दिया। लेकिन यह भी इतिहास बता रहा है कि सन्त जिनको पकडते हैं, उसको छोड़ते नहीं है चाहे कितना भी समय लग जाए। सन्त क्या करते हैं? जाने के बाद भी जीव को (अपने उत्तराधिकारी को) सौंप के जाते हैं। कहा गया है- चौथ (जन्म) में निज धाम। अर्थात चाहे चार जन्म लगे लेकिन सन्त पार करते ही करते हैं। एक के बाद दूसरा, दूसरे के बाद तीसरा, फिर चौथे को चार्ज, देते चले जाते हैं। अब अगर जीव चेत गया, जान गया, भजन कर लिया, कर्मों को काट लिया तो उसकी जीवात्मा का उद्धार हो जाता है और उसे दूसरा जन्म नहीं लेना पड़ता है।
सन्त सपूत होते हैं:-
महाराज जी ने बताया कि सन्तों का बड़ा विरोध हुआ लेकिन सन्तों ने हिम्मत नहीं छोड़ी और पुराने रास्ते को छोड़कर नया रास्ता अपना लिया। पुराने रास्ते में जो बधायें थी, वह बाधायें वहीं की वहीं रह गई। कहा गया है- लीक-लीक कायर चलें, लीके चले कपूत, लीक छाड़ तीनों चले, शायर सिंह सपूत। सन्त सपूत होते हैं। गुरु महाराज सपूत थे। सपूत जो होते हैं उसे चाहे बाप का कुछ न मिले, चाहे पैतृक संपत्ति न हो वह खुद संपत्ति बना लेते हैं, खुद प्रतिष्ठा बढ़ा लेते हैं, बाप का नाम पीछे हो जाता है। लोग लड़के को बाप के लिए कहते हैं जैसे यह जज साहब के, कलेक्टर साहब के पिताजी हैं। यह नहीं कहना पड़ता है की यह मास्टर साहब का लड़का है। यानी वह अपना रास्ता खुद बना लेते हैं।