धर्म कर्म: गुरु की दया से ही अब अंदर में प्रभु का दर्शन होता है, और गलती को माफ़ करने वाले भी वही है, ऐसे इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने उज्जैन में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जो साधना करते हैं, साधक होते हैं, उनकी बुद्धि मन की सफाई हो जाती है, उनका अंत:करण साफ हो जाता है। कहते हैं हीरा कहीं भी पड़ा रहेगा तो उसके गुण रहेंगे, खत्म नहीं होगा। और तनिक सा भी आवरण अगर हट गया, जैसे ही उपर पड़ी गोबर मिट्टी हट गई तो हीरा अपनी चमक दिखा देता है। ऐसे ही आत्मा के ऊपर की मैल हट जाती है, आत्मा निर्मल हो जाती है तो उसकी पहचान झलक जाती है।

साधना की गाड़ी कब आगे बढ़ती है

महाराज जी ने उज्जैन आश्रम में बताया कि जो नामदान आपको बताया जा रहा है आप उसको अच्छी तरह से समझ लो, याद कर लो। नहीं तो पुराने लोग जिनको नाम याद है, नाम, रूप, स्थान, आवाज सबको याद कराया जाता है। और गाड़ी तभी आगे बढ़ती है। जैसे क ख ग, A, B, C पढ़ाया जाता है बच्चे को, फिर अक्षरों को जोड़ना सिखाया जाता है कबूतर, आम, इमली आदि। तो यह शुरू का जरूरी होता है। अब किसी को क, ख, ग, A, B, C न आवे तो वह क्या word (शब्द) बना पाएगा, इसीलिए यह जरूरी होता है।

सुमिरन में यह धनी खुश कब होते हैं?

महाराज जी ने बावल रेवाड़ी हरियाणा में बताया कि सिमरन में यह धनी खुश तब होते, तब मदद करते हैं जब उनके नाम, रूप को याद करते हैं। इसलिए जिनके नाम को उनके रूप को याद करो। तीनों (ध्यान, भजन, सुमिरन) में मन को रोकने की जरूरत होती है। मन बहुत ही चंचल हो गया है। इसकी आदत बिगड़ गई, इंद्रियों के घाट पर बैठकर यह रस लेने लग गया। उसी का यह स्वाद लेने लग गया, उसी का आदी हो गया या उधर ही ले जाता है। लेकिन इसकी एक आदत होती है, यह एक जगह रुकता नहीं है, स्थिर नहीं रहता है, चलता रहता है। और सन्तों ने इसी से काम ले लिया। अगर यह एक जगह जम जाता तो जहां इंद्रियों के घाट पर बैठा है, वहीं पर बैठा रह जाता। फिर इधर आ नहीं पता। इसलिए यह जो चलते रहने की आदत है इसकी, उसी से सन्तों ने काम ले लिया। कहा गया है जो चलता है, चलने वाली चीज जैसे घोड़ागाड़ी, उसको किसी भी तरफ मोड़ दो आप। और जो बैठा जमा हुआ है जैसे पहाड़ को, कोई मोड़ नहीं सकता है। ऐसे ही मन को मोड़ने की जरूरत रहती है। इधर से ध्यान को हटाया और उधर लगा दिया। ध्यान अगर नहीं लगा तो वह चीज याद नहीं आती है।

प्रभु का दर्शन बंद होने पर और ज्यादा तडप जगेगी

महाराज जी ने उज्जैन आश्रम में बताया कि जब ध्यान लगाओगे, मन को रोकोगे और मालिक से मिलने की विरह तड़प आपके अंदर जगेगी, मालिक मिल जायेगा, मालिक का देश आपको दिखाई पड़ जाए, उसकी दया हो जाए, उसके नीचे के लोकों में, देव लोक, सूर्य लोक, चंद्रलोक में आप जाने, घूमने, देखने लग जाओ तो आपको बहुत अच्छा लगेगा। यहां के सूरज में बहुत गर्मी है लेकिन सूर्य लोक में जब चले जाओ तो वहां कोई गर्मी नहीं है, बड़ी शीतलता है। तो आपका मन बार-बार कहेगा वहां जाने को। एक बार जब वहां जाओगे तब मन ही नहीं मानेगा, नहीं भरेगा। अभी तो मन ही नहीं कहता है (साधना) करने को। करने लगोगे तब फिर मन मानेगा ही नहीं, अपने आप कराएगा। तो जब वहां जाओगे, देखोगे और आनंद मिलेगा, अच्छा महसूस करोगे तब आप दूसरों को बताने लगोगे। और जैसे ही बताओगे वैसे ही वह बंद कर देगा। फिर वह चीज न तो दिखाई न सुनाई पड़ेगी। तब उन चीजों को देखने के लिए तड़पोगे। प्रभु का दर्शन जब बीच में बंद हो जाएगा तब और ज्यादा तड़प जागेगी। कोई प्यासा है, प्यास लगी है तो पानी की उतनी तड़प नहीं रहती है। और दो गिलास पानी पीने की प्यास वाले को दो घूंट पानी पिला दो तो प्यास और बढ़ जाती है। ऐसे ही थोड़ा बहुत मिलने के बाद फिर प्यास तड़प और बढ़ जाती है। फिर तो बड़ा मुश्किल हो जाता है। (ऐसे) साधक सिर पटक-पटक कर रोते हैं, अन्न पानी नहीं भाता, नींद नहीं आती। इसीलिए कुछ भी दिखाई सुनाई पड़े, बताना मत किसी को। रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय। सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय। साधना करने वाले के मन में जो पीड़ा पैदा होती है, उस पीड़ा को दूसरा आदमी नहीं समझ सकता है। कहा है- जाके पांव फटी न बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई।

जिसके पैर फटे हो उसकी तकलीफ को दुसरा नहीं समझ सकता है। तो कहते हैं अंधे के आगे रोओ, आंसू बहाओ तो वह नहीं समझ पायेगा कि इसको ये तकलीफ है, रो रहा है। तो वह (साधक) क्या करते हैं? चुपचाप घुलते रहते हैं। जो अच्छे साधक होते हैं, कि हमारी साधना चली न जाए, दृष्टि के द्वारा, शरीर के स्पर्श के द्वारा, किसी भी माध्यम से, कोई एक गिलास पानी पिला दे, सेवा कर दे, हमारी साधना चली न जाए इसलिए अपने को छिपा करके रखते हैं। जाने वही लगे वही, जिसके लगी होये। तो जिसको लग जाती है तो वही उस चीज को समझता है। प्रेमियों आपको इसलिए बता दे रहा हूं कि आप किसी को बताना मत। और देखो उसका नाम है दीनबंधु दीनानाथ, गरीब परवर दीगर, वो मदद करता है, देता है, कब? जब उसके लिए दो आंसू आंखों से निकलते हैं। आप मन बनाओगे कि हमको उसको प्राप्त करना, याद करना है, अपने अंदर उसके लिए तड़प पैदा करनी है, उससे प्रेम करना है, प्रभु से, जिस तरह से चंद्रमा को चकोर प्रेम करता है, चंद्रमा को बराबर देखता रहता है, चोंच झुकी गर्दन झुकी, चितवत वाही और, बराबर उसको देखते रहता है। इस तरह से अपने ध्यान को जब लगाओगे, कंसंट्रेशन जिसको इंग्लिश में कहते हैं, जब कंसंट्रेट करोगे और तड़प के साथ याद करोगे तो वह जरूर मिलेगा, आपको दिखेगा, उसका जलवा दिखाई पड़ेगा, सारा जलवा नीचे के लोकों का उसी का है। जलवा ही दिखाई पड़ गया तो विश्वास हो जाता है।

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