धर्म कर्म: इस समय के पूरे समर्थ सन्त दुःखहर्ता उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि देखो प्रेमियो! आप जयगुरुदेव नाम का ठीक से प्रचार ही नहीं कर पाते हो। ठीक से बता दो, मुसीबत तकलीफ में विश्वास करके जयगुरुदेव नाम को एक बार बोले, बचत फायदा हो जाए तो मान लेना। पहले सारी बातें बताओगे तो जल्दी समझ में नहीं आएगा क्योंकि दूसरे-तीसरे दर्ज की पढ़ाई अगर पहले दर्जे के बच्चे को पढ़ाने लगोगे तो समझ में नहीं आएगा। पहले क ख ग सिखाओ, आजमाइश करके देख लो। बीमारियां, तकलीफ, टेंशन नहीं जा रहा है, जयगुरुदेव नाम की ध्वनि बोलना शुरू कर दो। बता दो। कोई काम नहीं बन रहा है, जयगुरुदेव नाम की ध्वनि बोल करके सच्चे मन सच्चे हृदय से जो जायज काम होगा, दो आना, चार आना से लेकर के 16 आना तक न बन पावे, एक आना, दो आना कुछ न कुछ तो बनेगा ही, खाली हाथ नहीं लौटोगे, कुछ न कुछ लेकर ही आओगे। बता दो लोगों को, आजमाइश करके देख ले। 106 डिग्री बुखार चढ़ा है, उतर नही रहा हो, दवा से फायदा न हो रहा हो, जयगुरुदेव नाम बोलकर के खिलाई हुई पिलाई हुई दवा ही पिला दो और ओढ़ करके लेटा दो तो देखो 2 घंटे के बाद बुखार कम होता है या नहीं। विश्वास, अनुभव से होता है। इस समय बच्चे और बच्चियों यह सब बताने की जरूरत है।

अपने-अपने स्तर से समझाओ, बताओ, बचाओ लोगों की जान

आप लोग कैसे भी समझाओ, बताओ। अपने-अपने तौर तरीके से ही बताओ, समझाओ। जान बचाना बहुत बड़ा पुण्य का काम होता है। दूसरों के काम आना, रास्ता बताना बहुत बड़ा पुण्य का परमार्थी काम होता है। मनुष्य ही परमार्थी काम कर सकता है, जानवर नहीं कर पाते। ये भोग योनि में आते हैं। आप आप ही चरे, वह तो दूसरे को सींग मार करके उनका हिस्सा भी खा लेते हैं लेकिन आदमी अपने भोजन में से, दो रोटी से एक रोटी दूसरों खिलाता है। परमार्थी काम मनुष्य कर सकता है। जो दफ्तर में नौकरी करते हो, कोई रोजगार करते हो, विद्यार्थी विद्यार्थी को, बच्चियां बच्चियों को समझाओ, माताएं माताएं को समझाओ, 24 घंटे में कुछ समय इसके लिए भी आप लोग निकालो।

यात्रा निकालने का मुहूर्त है, 10 दिन का समय है

यात्रा निकालो। यात्रा निकालने का यह मुहूर्त है, एक हफ्ते का समय जो आपके पास है, 10 दिन का समय है आज की तारीख से। यह मुहूर्त है। समय निकालो। गुरु का कहते हैं, दसवां अंश है इसीलिए गुरु के कर्जे को लोग धीरे-धीरे निकालते, देते रहते थे। धन तो दे देते हो, धन देने से कर्म कटते हैं, लक्ष्मी खुश होती हैं कि गुरु अच्छे काम में जब लगाते हैं तो खुश हो जाती हैं। धन तो बढ़ता जाता है लेकिन गोली खाने से भी (शरीर की) तकलीफ नहीं जाती क्योंकि वह कर्मों की तकलीफ है। शरीर से जो कर्म किया वह शरीर से की गयी सेवा से ही जाता है। उसका भी 10वां अंश निकालना चाहिए। दूसरों के लिए, परमार्थ के लिए निकालना चाहिए। जरूरी चीजों को जब भूल जाते हो तब तकलीफ होती हैं। तब तो कहते हो गुरु महाराज जो कर रहे हो, ठीक ही कर रहे हो, आपकी मौज है कि हम सजा ही भोंगे, गरीबी ही हम झेलें तो हम गरीबी झेलेंगे, हम क्या करें। गुरु को दोष देते रहते हो। कहते हैं न- नाच न जाने, आंगन टेढ़ा। दूसरों पर दोष देने की आजकल लोगों की प्रवृत्ति बन गई, इससे काम नहीं चलेगा।

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