धर्म-कर्म : पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि, रोज कर्म इकट्ठा होते हैं, रोज कर्मों को काटा जाता है। शरीर, मन, धन से कर्म बन गए, उनको काटने का उपाय निकाल दिया गया। क्या? कि कोई (दरवाजे पर भूखा) आ जाय तो उसे रोटी खिला दो, धन से गलत पाप कर्म बन गया, धन कहीं गलत जगह पर लग गया तो गाय, पक्षी, आदमियों को खिला दो। गर्मी बहुत है, पक्षियों, जानवरों के पानी पीने के लिए व्यवस्था कर दो, गौशाला बनवा दो आदि। तो उसमें धन लगा दो तो धन से बने पाप कर्म कट जाएंगे।
पहले लोगों में बहुत सेवा भाव था:-
शरीर से सेवा करो। पहले कितना बढ़िया नियम था लोगों का, रोटी बना करके पगडंडी रास्ते पर जाते थे, जहां से लोग पैदल आते-जाते थे। आने-जाने वाले लोगों को बुला-बुलाकर खिलाते थे। कोई किसी के यहां चला जाए तो फिक्र नहीं रहती थी कि कहां रहेंगे, क्या खायेंगे। किसी के दरवाजे पर पहुंच जाता तो खुश हो जाते थे कि बिना बुलाए मेहमान आ गए। मेहमान नहीं भगवान आ गए। उसके यहां जो भी रहता, अच्छे से अच्छा खिलाने की कोशिश करता, अच्छे बिस्तर में सुलाने की कोशिश किया करता था।
नीयत खराब होने से परेशानियां बढ़ती चली जा रही:-
पहले भाव अच्छे थे। लोग जब मेहनती ईमानदारी की कमाई करते थे, सेवा भाव रखते थे, पैदावार ज्यादा होती थी। उसमें सब खाने वालों का अंश आता था। एक कमाता, दस खाते थे। नीयत लोगों की अच्छी रहती थी। लेकिन अब वह चीजें खत्म होती जा रही हैं, इसलिए परेशानियां बढ़ती चली जा रही हैं।
प्रेमियो! रोज न कुछ न कुछ परमार्थी काम करना चाहिए:-
परमार्थी काम क्या है? जान बचाना बहुत बड़ा पुण्य का काम होता है। जीवों की हत्या करना बहुत बड़ा पाप होता है। यह जल्दी क्षमा नहीं होता। फिर तो सजा भोगनी पड़ती है। जान करके जो गलती करता है, उसको और सख्त सजा मिलती है। जीवों पर दया करो। सभी में प्रभु की अंश जीवात्मा है। जो हमारे-आपके अंदर है, वही हाथी घोड़ा ऊंट पशु-पक्षियों, कीड़ों जिनको हम-आप आंखों से देख नहीं सकते, सबमें यही आत्मा है। सब जीवों पर दया, रहम करो। जीव हत्या मत करो। जीवन को बचाना बहुत बड़ा पुण्य का काम होता है।