धर्म कर्म: पूरे समर्थ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जिम्मेदार लोगों को बताने की जरूरत है, जो खुद शाकाहारी है। चाहे किसी भी पद प्रतिष्ठा के पोस्ट पर हो, चाहे अधिकारी, कर्मचारी, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति हो, उनको अब यह पहल करने की जरूरत है। हमारे देश के मौजूदा शाकाहारी नशा मुक्त प्रधानमंत्री, इस समय पर हैं, वह कोई बात जब बोलेंगे तो दम रहेगा। अपने देश में कई ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जो शाकाहारी हैं। यह लोग जब कुछ बोलेंगे तब इसका असर पड़ेगा। महात्माओं को तो शराबियों कबाबियों ने कह दिया कि यह बाबा लोग तो बोलते ही रहते हैं। इनको तो बड़े-बड़े बाल हैं, सर में गर्मी आती है तो कुछ न कुछ बोलते रहते हैं। जैसे बड़े-बड़े बाल वाली औरत को गुस्सा आता है, हाथ-पैर पटकती है, ऐसे बाबा लोग भी बोलते रहते हैं। ये लोग तो यह कहते हैं। लेकिन यह नहीं मालूम है कि ज्यों केले के पात के पात-पात में पात, त्यों सन्तों के बात में बात बात में बात। उनकी बातों में बात होती है। 12 वर्ष रहे हंस की टोली, तब समझे सन्त की एक बोली। उनकी बातें कभी भी गलत नहीं हो सकती है। सन्त वचन पलटे नहीं, पलट जाए ब्रह्मांड।

एक तरफ गौ माता कहते हैं दूसरी तरफ उसका मांस खाते हैं

गाय पीने के लिए दूध देती है। उसका मांस खाने के लिए नहीं देती है। आप सोचो एक तरफ तो गौ माता कहते हैं और दूसरी तरफ उसका मांस खाते हैं। माता का कोई मांस खाता है? अगर कोई खाता है तो उसकी बुद्धि खराब हो गई। फिर तो वह मानव इंसान कहां रह गया? कुत्ता भी अपने कुत्ते के मांस को नहीं खाता है। वह भी उसको छोड़ देता है, दूसरे के मांस को खाता है। और आप जिसका दूध पीते हो, माता कहते हो, उसका मांस खा जाते हो। और कहते हो हम पुजारी, हिंदू, नेता, अधिकारी हैं, कहने के हकदार हो? सोचो आप। भाई! अब चेत जाओ। कोई बताने वाला नहीं मिला तो अब सुन लो, समझ लो, अब चेत जाओ। जब चेतो तब ही सवेरा। सुबह का भूला शाम को घर वापस आ जाए तो भूला नहीं कहलाता है।

अहंकार कम कैसे होगा

यह जो सुमिरन ध्यान भजन आपको बताया गया, इसी से दरवाजा खुलेगा। इसको जब बराबर करने लगोगे तब मोह, लोभ, अहंकार, काम, क्रोध कम होगा। नहीं तो यह पांच भूत जो सिर पर सवार हैं, यह बराबर सवार रहेंगे और बराबर शरीर को पापी बनाते रहेंगे, मन विचार भावनाओं को खराब कर दिया करेगा। लेकिन जब उपर की तरफ मन लगेगा तब मन यह नहीं कहेगा कि यहां जो ढोलक मंजीरा बाजा बज रही है, रामलीला रासलीला हो रही है, मोबाइल टीवी में जो सीरियल आ रहा है, इसको देखो। फिर तो मन कहेगा कि अंदर में जो बाजा बज रहा है, उसे सुनो। जिन घर नौबत बाजती, होत छतीसों राग, यह मंदिर खाली पड़ा बैठन लागे काग। महात्माओं ने बहुत तरह से समझाया है। कहा यह मनुष्य शरीर जिसमें पांचो नौबत बज रही है और छतीसों राग बज रहे हैं, यह राग, ताल, ध्वनी, रागिनी। आप सब लोग नहीं समझते होंगे लेकिन संगीतकार सब समझते हैं। हारमोनियम सिखाते समय सा रे गा मा पा दा नी सा, इसी को पूरा सीखते गवाते हैं। इसी आधार पर कहते हैं गाओ, बजाओ। तो यह सब राग और रागिनी यह सब अंदर में हो रही है। तो सन्तों ने कहा, छतीसों राग इसी (मनुष्य शरीर) के अंदर हो रहा है। राजा लोगों के महलों पर नौबत बजती थी। अब तो कथा भागवत भी मोबाइल में सुन लेते हैं लोग। अब तो कोई मंदिर में घंटा बजाता नहीं है। वही घंटा रिकॉर्ड किए हुए, वहीं घड़ियाल सुना देते हैं। और लोग समझते हैं, घंटा बज रहा है। सब काम आसान होता चला जा रहा है। जब तक मेहनत नहीं की जाएगी, शरीर के कर्म कैसे कटेंगे? अंतर में आवाज हो रही है, बाजा बज रहा है। जैसे ही सांसों की पूंजी खत्म होगी, यह धड़ाम से गिर जाएगा और इस पर गिद्ध और कौवा बैठने लगेंगे।

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