धर्म कर्म: पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि ब्रह्मचारी का मतलब क्या होता है? ब्रह्म में विचरण करने वाला। बैठे यहां रहो और ब्रह्म में विचरण करते रहो, घूमते रहो जैसे राज्य जनक थे। विदेही कहलाते थे। शरीर में रहते थे लेकिन निकल जाते थे। जैसे नारद थे। यहां से विष्णु लोक सब जगह घूमते थे। ऐसे ब्रह्म में विचरण करो। और यहां के ब्रह्मचर्य का मतलब क्या होता है? एक नारी ब्रह्मचारी, उसको ब्रह्मचारी कहा गया । जो अपनी नारी से ही प्रेम रखता है और दूसरे की नारी, मां, बहन को अपनी मां-बहन की तरह से समझता है। जननी सम जानही पर नारी, धन पराया विष ते विष भारी। दूसरे के धन को जहर से जहर समझता है, वह ब्रह्मचारी होता है।

हँसते-हँसते जीवन सफ़र पार करने का तरीका

देश प्रेम बराबर बनाए रखना। देश की संपत्ति आपकी अपनी संपत्ति है। आपकी वजह से देश का कोई नुकसान न हो। किसी व्यक्ति, धार्मिक ग्रंथ, मजहब, मजहबी किताब, राजनेता, जाति धर्म की निंदा मत करो। सबसे प्रेम करो। दिल में प्रेम की जगह बनाओ। लोगों के दिल को जीतने का काम करो। नियम-कानून का पालन करो। अधिकारियों-कर्मचारियों का सम्मान करो। उनके काम में बाधा मत डालो। अच्छा बनो। अच्छा समाज बनाओ। अच्छा लोगों को बनाओ। अच्छे की हमेशा कद्र होती है और अच्छे को, निर्मल हृदय को वह मालिक भी पसंद करता है। निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहे कपट छल छीद्र न भावा। तो अंतर में निर्मलता लाओ। तन मन से सांचा रहे, सतगुरु पकड़े बांह, काल कभी रोके नहीं, देवे राह बताये। तरह-तरह से उदाहरण देकर महात्माओं ने समझाया है। और बराबर आप लगे रहो, जीवन का यह सफर है जिसको हंसते-हंसते आप पार कर लो। और हंसते-हंसते यह तभी पार होगा जब आपको जो यह बताया जाता है, वैसा करोगे तो यह हंसते-हंसते निकल जाएगा। हँसते-हँसते अपना काम बन जाएगा। धाम अपने चलो भाई, पराये देश नहीं फंसना। अपने देश में चलो, पराये देश में मत फंसे रहो।

मनमुख को जल्दी मुक्ति मोक्ष नहीं मिलता है

मन को रोकना पड़ता है। मन को एक तरह से मारना पड़ता है। मन के कहे करो मत कोई, जो गुरु कहे, करो तुम सोई। जो गुरु कहते हैं, गुरु का कहना मानना पड़ता है। गुरु का कहना मानना ही गुरु भक्ति होती है गुरमुखता उसी को कहते हैं। वही किया जाता है तो वह गुरमुख कहलाता है। मनमुख कौन होता है? जो मन कहता है उसको हाथ, पैर, आंख, नाक, कान से करता है। मनमुख को मुक्ति मोक्ष जल्दी नहीं मिलता है। उसको तो लौट-लौट चौरासी आया, तो लौट-लौट के चौरासी लाख योनियों में आना पड़ता है। मनुष्य शरीर भी अगर मिल जाता है तो जन्मने-मरने की भयंकर पीड़ा बर्दाश्त करनी पड़ती है। तो गुरु मुखता लाने की जरूरत है। (जितनी देर साधना में बैठो) उतनी देर के लिए (दुनिया को) भूल करके शब्दों को पकड़ने की जरूरत है। मन को उधर से हटाना होता है। और मन को अगर नहीं मारोगे तो वह (साधना का) समय बेकार जाएगा। कहा गया है- माला तो कर में फिरे, जीभ फिरे मुख माही, मनवा तो चहुँ दिशी फिरे, वह तो सुमिरन नाही। यह तो सुमिरन नहीं होता है।

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