धर्म कर्म: पूरे समर्थ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि देवता मुर्गा बकरा नहीं खाते हैं। वह तो ऐसे देवता के सामने लोग चढ़ाते हैं जो न बोले न डोले। कुछ कहो तो सुने नहीं, कुछ पूछो तो बतावे नहीं। उनके सामने चढ़ा देते हैं। अब अगर वह जिंदा देवता होते तो वह अपने सामने चढ़ाने देते? नहीं। वह तो समझो, मार लगाते। तो ऐसे तो कुछ भी (मन मर्जी से) करो। ऐसे नहीं। तो दया रखना चाहिए, हिंसा-हत्या नहीं करनी चाहिए। जीवों पर दया करो। आत्महत्या भी बहुत बड़ा पाप होता है। देवता हमेशा देते हैं, लेते नहीं है। और जो समर्थ गुरु होते हैं, वह देते भी हैं और लेते भी हैं। क्या लेते हैं? जो कोई लेने को तैयार न हो, जीव के बुरे कर्म, पापों की गठरी को लेकर के अपने ज्ञान अग्नि के द्वारा जलाया करते हैं, अंदर की सफाई कर देते हैं। शरीर, कपड़ा गंदा हो जाए तो आप धो लेते, साफ कर लोगे लेकिन अंतरात्मा गंदी हो जाए तो उसको आप साफ कर पाओगे? कहां से आप अपने अंदर हाथ डालोगे? अंदर बलगम जमा हो जाये तो उसको भी नहीं साफ कर सकते हो तो अंदर अपनी अंतरात्मा कैसे साफ करोगे? तो उसे कौन साफ करता है? धोबिया वह मर जाएगा, चादर लीजिए धोय, चादर लीजिए धोय, भई वो बहुत पुरानी, चल सतगुरु के घाट, बहे जहाँ निर्मल पानी। सतगुरु धोते साफ करते हैं।
शिव जी किस नशे में रहते हैं
शिवजी को लोगों ने बदनाम कर दिया। कहते हैं वह भांग गांजा पिते थे। शिवजी ने कभी गांजा भांग नहीं पिया। वह आत्मिक नशे में रहते थे। वह नशा जो कभी खत्म होता ही नहीं था। जिसके लिए नानक साहब ने कहा- भांग भखुरी सुरापान, उतर जाए प्रभात, नाम खुमारी नानका, चढ़ी रहे दिन रात। कोई रात को भांग खा ले, गांजा शराब पी ले तो सुबह नशा उतर जाता है लेकिन नाम का नशा कभी उतरता ही नहीं है। वह तो नाम को जपते रहते हैं। नाम को, नामी को याद करते रहते हैं, जिनसे उनकी उत्पत्ति हुई है। यह तो गंजेड़ीयों ने शंकर जी को बदनाम कर दिया। गांजा की चिलम भरने के बाद बम बम बम बोलने लग गए और बोले शंकर जी भी गांजा भांग पीते थे। अब मदहोशी में बोलते हैं कि शिवजी की बूटी क्या (बढ़िया) मजा दे रही है। गंजेड़ी यार किसके, दम लगाकर खिसके। वह किसी के होते हैं? जब गांजा पी लेते हैं तब कुछ नहीं। पीने के लिए जाएं कहीं तब उनसे जो चाहे सो करवा लो। और जहां पिए, नशे में उल्टा-सीधा बोलते चले जाते हैं, यह बुद्धि ही खराब कर देता है। ऐसा नशा है जिससे आदमी होश में नहीं रह जाता है, मां, बहन, बहू, बेटी की पहचान खत्म कर देता है। इसीलिए हम हाथ जोड़कर के इसको छुड़ाते हैं- हाथ जोड़कर विनय हमारी, तजो नशा बनो शाकाहारी। शाकाहारी बनो तो बुद्धि दिमाग सही रहेगी। नशा जब कोई ऐसा नहीं करोगे जिससे बुद्धि खराब हो जाए, अपराध भ्रष्टाचार हो जाए तब भगवान के दर्शन के हकदार हो जाओगे। बह्म में विचरण के हकदार हो जाओगे, कब? जब तजो नशा बनो शाकाहारी, छोड़ो व्यभिचार बनो ब्रह्मचारी और सतयुग लाने की करो तैयारी।
धार्मिक भावना है पर धर्म को नहीं समझ पाते हैं
यह धार्मिक देश है। यहां धर्म की मान्यता है। अब यह जरूर है कि धर्म को नहीं समझ पाते हैं। रामायण तो पढ़ते चले जाते हैं लेकिन गोस्वामी जी महाराज ने जो उसमें लिखा कि धर्म न दूजा सत्य समाना, आगम निगम पुरान बखाना। सब तें सेवक धरमु कठोरा। परहित सरिस धर्म नहि भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधमाही। दया धर्म तन बसे शरीरा, ताकि रक्षा करे रघुवीरा। उसको भले ही न समझ पाते हो, भले ही न अमल कर पाते हो लेकिन धर्म के नाम पर मरने-मिटने को तैयार हो। चाहे हिंदू, मुसलमान सिख ईसाई हो। धार्मिक देश होने के कारण, धार्मिक देश की भूमि का अन्न खाने के कारण, धार्मिक देश का जल पीने के कारण, आसमान के नीचे रहने के कारण, उनके अंदर धार्मिक भावना है। धार्मिक लोग जो हो, उनको धर्म को समझने की जरूरत है।