धर्म कर्म; जिनके माध्यम से ही बाबा जयगुरुदेव जी अब अपनी दया दे रहे हैं, ऐसे उनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, वक़्त गुरु, पूरे समर्थ सन्त, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त महाराज जी ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जिन्हें नामदान मिल गया है, आप बराबर सुमिरन ध्यान भजन करो ताकि इस दु:ख के संसार में बीमारी झेलने के लिए, घर में लड़ाई-झगड़ा, वैमनस्यता, ईष्या-द्वेष, गरीबी, अपमान झेलने के लिए दोबारा आना न पड़े। और जो आप नये लोग नाम दान लेने के लिए आये हो, आपको उपाय, नाम बताया जाएगा। जब आप मन को रोक करके उसको करोगे तो जो हमारे गुरु महाराज है, हमको दया दे रहे हैं, और जो अपने अपनाए हुए जीव हैं, उनको जो दया दे रहे हैं और देने के लिए बताया जा रहा है, उसी तरह की दया आपको भी गुरु महाराज से मिलेगी लेकिन समझ करके जब करोगे।

गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज पूरे पूर्ण सन्त थे

आप कहोगे सन्त, महात्मा, योगी, योगेश्वर यानी क्या होता है। जिसको यह मालूम हो जाए कि यह दुनिया नाशवान है, इन बाहरी आंखों से जितनी भी चीजें दिखाई पड़ती है, यह एक दिन छिप जाएगी और जब आंख बंद हो जाएगी, यह घर-मकान, कोठी, रुपया-पैसा, धन-दौलत, पुत्र-परिवार कोई भी काम नहीं आएगा। हमारे साथ हमारा किया हुआ कर्म ही जाएगा, जो अच्छा-बुरा हाथ, पैर,आंख, नाक, कान से किया, करेंगे, जिसे इतनी ही जानकारी हो जाए उसको मुनि कहते हैं। जो ब्रह्मा, विष्णु, महेश यह तीनों देवता हैं, जिनको ही बहुत से लोगों ने सब कुछ मान लिया है उनकी ही जानकारी हो जाए, जिनको सच्चीदानंद, ज्योति नारायण, कहा गया, उनके बारे में अगर जानकारी हो जाए तो उसको देवर्षि कहते हैं। उसके आगे (तक की पहुँच वाले) योगी, योगेश्वर, साध। यह सब (बहुत से) लोक हैं। ऊपर में लोकों के मालिक है। और यह जीवात्मा जो हमारे-आपके अंदर परमात्मा की अंश है, यह वहां खचाखच भरी हुई है। बहुत बड़े-बड़े लोक हैं। तो जो उसके आगे जाते हैं, योगेश्वर, फिर साध, फिर सन्त और फिर परम सन्त। सन्तों का दर्जा सबसे ऊंचा हुआ करता है। तो गोस्वामी जी महाराज सन्त थे। वह आदि और अंत दोनों को जानते थे। वह उस नाम को जानते थे, जिसके लिए कहा गया है- कोटि नाम संसार में, ताते मुक्ति न होय, आदि नाम जो गुप्त जपे, बिरला समझे कोय। हर कोई नहीं समझ सकता है उसको। वह तो जो सुनता है, उन नाम को जो अनुभव करता है, उसी को पता चलता है।

राम भी नाम की महिमा के बारे में नहीं जान सकते हैं

इस समय राम भगवान की देश-विदेश में खूब चर्चा है। लेकिन राम भगवान के बारे में जो गोस्वामी जी ने लिखा, राम भी नहीं समझ सकते हैं, इतनी बड़ी महिमा नाम की है। राम न सकहीं नाम गुण गाई, कंह लग करूं मैं नाम बढ़ाई। वह नाम जिसमे सब कुछ समया हुआ है, जिससे ही यह सारी सृष्टि, अंड, पिंड, ब्रह्मांड जुड़े हुए हैं। ध्वन्यात्मक नाम। वही नाम सब कुछ है। उसी के बारे में उन्होंने कहा, कलयुग केवल नाम अधारा, सुमीर सुमीर नर उतरहि पारा, नाम लेते भव सिंधु सुखाही, सुजन विचार करो मन माही, तो वह नाम, राम भी उसके बारे में में नहीं जान पाये, तो वह नाम क्या है? कौनसा नाम है? और कहां मिलेगा? तब उन्होंने कहा, नाम रहा संतन आधीना, सन्त बिना कोई नाम न चीन्हा। बगैर सन्त के नाम की पहचान नहीं हो सकती है। उनके अधीन में नाम हुआ करता है। वही नाम समय-समय पर सन्त आते हैं तो वर्णनात्मक और ध्वन्यात्मक नाम लोगों को बताया करते हैं। (तो आज सतसंग में आपको) उस नाम की जानकारी हो जाएगी।

विद्वान लोग परे की विद्या अर्जित नहीं कर पाए

अयोध्या विद्वानों की नगरी कही जाती है, आज भी। अयोध्या, काशी जहां-जहां महापुरुष रहे, सब जगह विद्वान लोग रहे हैं। लेकिन यह देखा गया कि पढ़े-लिखे विद्वान लोग बस किताबों में ही उलझे रह गए, उसी में चोंच लड़ाते रह गए। वो उस विद्या का ज्ञान नहीं कर पाए जो परे की विद्या है, जो इन आंखों से ऊपर का ज्ञान है, विद्या है, उसको वे अर्जित नहीं कर पाए।

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