धर्म कर्म; बाबा जयगुरुदेव जी महाराज के तीन दिवसीय जीव जीवन रक्षक भंडारा कार्यक्रम में पूज्य सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज जी ने अपने सन्देश में बताया कि गृहस्थ का यह धर्म है कि गृहस्थी को संभाले। जो विरासत में मिला है, पिताजी जो बनाकर के गए, उसको बनाए रखा जाए। कुछ अपनी कमाई से जो बना, वह भी बर्बाद न हो। बच्चों के लिए लोग करते हैं क्योंकि औलाद से बड़ा मोह होता है। लेकिन औलाद ही बिगड़ गया तो धन रह जाएगा? सब बर्बाद कर देगा, पता भी नहीं चलता है। जब पढ़ने-लिखने, नौकरी के लिए बच्चे, बच्चियां बाहर गए, अगर गलत आदमी, गलत बच्चों, बच्चियों के साथ में पड़ गए तो बुराइयों की नकल जल्दी करने लगते हैं। सतसंगियों के लड़के, रिश्तेदार शराब पीने, अंडा खाने लग जाते हैं, बुद्धि खराब हो जाती है। लड़का, लड़कियों के चक्कर में और लड़कियां लड़कों के चक्कर में जब फंस जाते हैं तो उससे निकाल पाना बड़ा मुश्किल हो जाता है।

बच्चों का सब लोग ध्यान रखो कदम कदम पर आप परखते रहो

बचपन में जब बैठते रहते हैं बच्चों को तब जयगुरुदेव नाम ध्वनि, सुमिरन, ध्यान, भजन भी करते हैं लेकिन घर छोड़कर के जैसे निकलने लग गए, आपका कंट्रोल उन पर से जब खत्म हो जाता है, वही बच्चे बिगड़ जाते हैं। आपकी जिम्मेदारी बनती है कि बच्चों का आप सब लोग ध्यान रखो। कदम-कदम पर आप उन्हें परखते, देखते रहो। अपने जीवन के अनुभव के आधार पर उनकी निरख-परख करते रहो। सतसंगों में अगर लाते रहोगे, ध्यान-भजन में उनका मन लग गया तब उनका ध्यान इधर-उधर कहीं नहीं जाएगा। फिर तो सूर श्याम काली कमली पर चढ़े न दूजो रंग। जैसे काले कंबल पर दूसरा रंग नहीं चढ़ता ऐसे ही जब सतसंग ध्यान भजन के रंग में रंग जाएंगे तब उन पर दूसरा रंग नहीं चढ़ेगा।

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