धर्म-कर्म : इस कलयुग में सन्त वंशावली के वर्तमान जीवित सन्त जिनमें पहले के सभी सन्त समाये हुए हैं, जिनमें उन सभी के दर्शन आज भी किये जा सकते हैं, कर्म कटवाने वाले, सारी दुनिया में धोखा खा सकते हो लेकिन जिनके चरणों में कभी भी धोखा नहीं मिलेगा, सृष्टि के संचालनकर्ता, सबके मालिक, पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, दयालु दाता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि, सन्तों ने इस युग में साधना करना अब एकदम सरल कर दिया। अब न घर छोड़ना है, न जमीन-जायदाद छोड़ना, न सुबह उठकर के नहाना-धोना, न चंदन टीका लगाना, न गंगाजल से शरीर को पवित्र करना, न मुंड मुढ्नवाना, न बाल बढ़ाना, न कोई फूल पत्ती नैवेद्य लाना, न कोई जौ, तिल, लाना, अब कुछ नहीं। अब तो जहां रहते हो, वहीं पर इस गुरु महाराज के और उनके जाने के बाद बताये इसी नाम का सुमिरन, ध्यान, भजन कर लो। सन्तमत में सेवा, सतसंग, भजन प्रमुख है। सेवा से कर्म कटते हैं, संस्कार बनते हैं। आपके अच्छे संस्कार, अच्छे कर्म थे तब आप यहां खिंच करके आए हो। आप तपस्या रात में किए हो, देखो थोड़ी ही ठंडी लगी लेकिन उससे कर्म कटे। जो भी आपको भंडारे में रुखा-सूखा, जला-भुना मिल गया, थोड़ा ही मिल गया हो, भूख लगी रह गई हो, पूरा पेट न भरा हो, उससे आपके कर्म कटे। इससे कर्म कटते हैं। और जब तक कर्म लदे रहते हैं तब तक कहते हैं, सर भारी है। कर्म लगा रहता है जब तक उसकी भावना अच्छी नहीं रहती है, विचार अच्छे नहीं रहते हैं, अच्छी चीज को सोच नहीं पता, अच्छी जगह जा नहीं पता, अच्छा काम नहीं कर पता है। तो यह कर्म काटे, कटवाए जाते हैं। कर्म कटवाने वाले को सब तरीका मालूम होता है। वो सक्षम होते हैं।
मैं तो सेवक कहता हूं अपने को: बाबा उमाकांत जी
मुख्य चीज विश्वास होता है। विश्वास फलदायकम। जो विश्वास करता है, विश्वास के साथ करता है, वह फल देता है। और प्रेमियो! जो काम में कर रहा हूं, ऐसा काम करने वाले कितने लोग आए, किसी ने सन्त कहा, किसी ने महात्मा, सतगुरु कहा। मैं तो अपने को सेवक कहता हूं। लेकिन सब लोगों ने एक तरह की बातें बताई, कोई स्वार्थ अपना नहीं रहा, किसी को धोखा नहीं दिया। इसलिए कहा गया है परमार्थ के कारने, सन्तन धरा शरीर। तो आप यह सोचो आपको कैसे धोखा दिया जा सकता है? इसलिए आप विश्वास करो और जयगुरुदेव नाम की ध्वनि बोलो, परिवार वालों को बुलवाओ और परीक्षा लेकर के देखो।
कुछ लोग साधक बन करके दूसरों की साधना की बातें पूछ लेते हैं तो नुकसान हो जाता है
(जब नामदान के समय बताई गयी सुरत शब्द योग साधना करोगे तब अंदर में (दिव्य) दिखाई सुनाई पड़ेगा।) चाहे पति को दिखाई पड़े तो उसकी पत्नी हो, बच्चे हो, हित मित्र दोस्तों आदि किसी को भी मत बताना। गलती मत करना। यह गलती लोग कर जाते हैं। ऐसे उल्टा-सीधा घुमा-फिरा करके, साधक बन करके कुछ लोग पूछ भी लेते हैं तो भी उसमें नुकसान हो जाता है। इसलिए बताना मत किसी को, कुछ भी दिखाई और सुनाई पड़े। और मेहनत करोगे थोड़ा, रोज बैठोगे तो दिखता-सुनाई पड़ता है।