लखनऊ। देवी दुर्गा के पांचवें स्वरूप में स्कंदमाता की पूजा की जाती है। इन्हें अत्यंत दयालु माना जाता है। कहते हैं कि देवी दुर्गा का यह स्वरूप मातृत्व को परिभाषित करता है। इनकी चार भुजाएं हैं। इनकी दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा में भगवान स्कंद गोद में हैं और दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपरी भुजा वरमुद्रा में और नीचे वाली भुजा में भी कमल हैं। माता का वाहन शेर है। स्कंदमाता कमल के आसन पर भी विराजमान होती हैं इसलिए इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। आइए जानते हैं इनकी पूजन विधि, आरती, मंत्र, कथा, भोग विधि।
स्कंदमाता की पूजन विधि:
देवी स्कंदमाता की पूजा करने के लिए पूजा स्थल पर माता की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें। तस्वीर वहां पर स्थापित करें जहां पर कलश स्थापना की हुई है। फिर उन्हें फल चढ़ाएं, फूल चढ़ाएं। इसके बाद धूप-दीप जलाएं। मान्यता है कि पंचोपचार विधि से देवी स्कंदमाता की पूजा करने बेहद ही शुभ माना जाता है। इसके बाद की पूरी प्रक्रिया ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा और बाकी देवियों की जैसी ही है।
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स्कंदमाता का मंत्र:
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
स्कंदमाता की आरती:
जय तेरी हो स्कंद माता।
पांचवा नाम तुम्हारा आता।।
सब के मन की जानन हारी।
जग जननी सब की महतारी।।
तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं।
हरदम तुम्हें ध्याता रहूं मैं।।
कई नामों से तुझे पुकारा।
मुझे एक है तेरा सहारा।।
कही पहाड़ो पर हैं डेरा।
कई शहरों में तेरा बसेरा।।
हर मंदिर में तेरे नजारे।
गुण गाये तेरे भगत प्यारे।।
भगति अपनी मुझे दिला दो।
शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो।।
इंद्र आदी देवता मिल सारे।
करे पुकार तुम्हारे द्वारे।।
दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आएं।
तुम ही खंडा हाथ उठाएं।।
दासो को सदा बचाने आई।
‘चमन’ की आस पुजाने आई।।
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