धर्म कर्म: इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जब सृष्टि की रचना हुई, जब देवी देवता ब्रह्मा विष्णु महेश, जीव-जंतु, पेड़-पौधे बनाए गए थे, उस समय पर मनुष्य की उत्पत्ति भी हुई थी। यह प्रार्थना, सुमिरन, ध्यान की प्रक्रिया तभी से चली आ रही है। मां के पेट में जीव इस दुनिया के रचयिता ज्योति नारायण का दर्शन करते थे और बराबर ध्यान लगते, सुमिरते, प्रार्थना करते थे कि एक मौका दे दो, हमारे हाथ-पैर आदि ठीक से बना कर बाहर निकालो। होश संभालते ही मैं समरथ गुरु की तलाश करके दिन-रात भजन करूँगा। लेकिन जीव बाहर आकर भ्रम में पड़ गया। उपरी दिव्य प्रकाश, आवाज/शब्द यहां नहीं मिलता तो बच्चा रोता है। बच्चे ने प्रकृति से मिली चीजों से बने मां के दूध को पिया। जब बच्चा बड़ा हुआ तो ज्यादा खाने की जरूरत हुई तो फल-फूल, जड़ी-बूटियां खोज कर खाने लगा। जिनको यह चीज नहीं मिली, वह जानवरों को ही मार करके मांस खाने लग गए क्योंकि अज्ञानी थे। फिर कर्मों का विधान बना। मनुष्य के लिए अच्छा-बुरा कर्म के नियम बना दिए गए। ब्रह्मा को वेदवाणी देववाणी संस्कृत में सुनाई पड़ी तब वो भजन के बारे में भी जानकारी कर पाए। उस आवाज में विधान बन गया- जीवों को सताना, हत्या करना बहुत बड़ा पाप है, सच बोलो, हिंसा-हत्या मत करो, दया करो, मदद करो आदि। उस समय ज्ञान था कि सब में ब्रह्म का ही अंश है तो लोग रक्षा करते थे।
होटलों में कुत्ते का मांस खिला देते हैं, कुछ पता नहीं चलता
आजकल मांसाहारियों की मांस खाने की आदत बन गयी। अगर इनको मांस न मिले तो आदमी को ही मार करके खाने लग जाएंगे। जिनका मांस के बगैर पेट नहीं भरता है, उनको तो चाहिए ही चाहिए। रात को दो बजे होटल में पहुंचे, बोले मांस लाओ, मांस के बगैर हमारा चलेगा ही नहीं। अब कहां से मांस लाए? होटल के आसपास कुत्ते लगे रहते हैं, उन्ही को मार करके ले आए, मांस निकाला, बनाया, खिला दिया। किसी को पता चलता है कि किस चीज का था? उनको तो मांस मिलना चाहिए।
जिसका यह देश है, उसने सन्त महात्माओं को धरती पर भेजा व्यवस्था को सही करने के लिए
उस समय मांसाहार बढ़ा तो कर्मों की सजा मिलने लग गई। लोग नरकों में जाने लग गए। तो जिसकी दुनिया है, उसने सोचा की अगर नरकों में ही सब चले जाएंगे तो धरती पर कौन रहेगा? कैसे पेड़-पौधे हरे रहेंगे? इनकी सिंचाई कौन करेगा? जानवरों को कौन खिलाएगा? हमारी व्यवस्था बिगड़ जाएगी। तो उसने भेजना शुरू किया जिनको महात्मा, समरथ गुरु, समाज सुधारक कहा गया। जब वह लोग आए तब उन्होंने, जिनकी वजह से बुराइयां बढ़ रही थी, लोगों के कर्म खराब हो रहे थे, नर्क के दरवाजे खुल रहे थे, उसको बंद करने का उपाय निकाला, कहा शाकाहारी हो जाओ और ऐसे नशे का सेवन मत करो जिससे विवेक, बुद्धि, सोचने-समझने की शक्ति खत्म हो जाए। उपदेश देना शुरू किया। जो पावर, शक्ति ऊपर से ले करके आए, उस शक्ति से जीवों का भला करने लग गए।
एतिहासिक वैदिक काल में शाकाहार पूरे विश्व में फैला था
क्योंकि चर्म रोग समेत अन्य रोग मांसाहार की वजह से ही होते हैं। उस समय यह अंग्रेजी आयुर्वेदिक यूनानी होम्योपैथिक बायोकेमिक यह दवाएं तो थी नहीं तो गलत खान-पान की वजह से हुए रोग के लिए जड़ी-बूटियां देते थे। तो उन्हीं के द्वारा उपचार बताए, बहुत शिक्षाएं दें। जब अचार-विचार-व्यवहार सही हो गया, लोग स्वस्थ रहने लग गए तो वैदिक काल आया था। उस समय पर शाकाहार बहुत बढ़ा, पूरे विश्व में फैला था। उसके बाद में जो आए, उन्होंने इसके बारे में कोई विशेष जोर नहीं दिया। तब तक यह मलेक्छों का राज्य जिसे कहा जाता है, वह आ गया, जिनका कोई भारतीय संस्कृति आती नहीं थी। उसकी वजह से मांसाहार बहुत बढ़ गया।