धर्म-कर्म: इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि दुनिया के जितने भी नशे हैं, यह सब खत्म होते हैं। भांग शराब कोई रात को पी ले तो सुबह नशा उतर जाएगा। लेकिन नाम का नशा जब इस शरीर के अंदर आ जाएगा तो यह कभी भी नहीं हटेगा। इसलिए तो कहा भांग भकुरी सुरापान उतर जाए प्रभात, नाम खुमारी नानका, चढ़ी रहे दिन रात। नानक साहब ने कहा नाम का नशा दिन-रात चढ़ा रहता है।
एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाय:-
साधक जो साधना करते हैं, फटे-पुराने कपड़ों में ही रहते हैं लेकिन बोली-वाणी, उठना-बैठना उनके हाथों का इशारा, हाथ जोड़ना, भाव ऐसे रहते हैं की आदमी उनकी बातों से प्रभावित हो ही जाता है। और जो यह कहते हैं हम ऊँचे पद-पोस्ट पर है, हम बहुत पढ़े-लिखे हैं और हमसे सब डरते हैं और हमारी दोस्ती बड़े-बड़े अधिकारियों, नेताओं से है, उनकी बात वह नहीं सुनता है, उनको उठा देता है। और जब साधक चला जाता है तो उससे प्रभावित हो जाता है। तो यह सब शक्तियां आ जाती है। किसके पास? जो एक को साधने में लग जाता है। एके साधे सब सधे, सब साधे सब जाय। जो प्रभु को प्राप्त करने में, जिसके आधीन यह सब कुछ है, उसको प्राप्त करने में जो लग जाता है, उसमें सारी शक्तियां आ जाती है।
धन तेरस नाम क्यों पड़ा?
महाराज जी ने दीपावली सतसंग कार्यक्रम में बताया कि तेरस के दिन धन इकठ्ठा करो। कौन सा धन? आत्मधन। वो धन जब मिल जाता है तब इधर से लगाव हट जाता है, तब किसी भी धन की कमी नहीं होती है, तब कुबेर जो धन के भंडार कहे जाते हैं, लक्ष्मी जिनको लोग पूजते हैं कि ये हटे न, जाए न, ये रिद्धि-सिद्धि जो देवी कहलाती हैं, जिनकी लोग धन तेरस पर पूजा करते हैं, ये हटती नहीं है। जब वो धन मिल जाता है फिर तो- जो इच्छा किन्ही मन माहीं, गुरु प्रताप कछु दुर्लभ नाही। फिर तो आदमी जिस चीज की इच्छा करता है, उसकी वो इच्छा पूरी हो जाती है। पहले के समय में लोग इसी आत्म धन को इकठ्ठा करते थे, आत्मा को बलवान, कीमती बनाते थे। अभी आत्मा कैसी है? अभी तो जैसे किसी लोहे के ऊपर जंग, कालिख, गोबर या मिट्टी लगा दिया जाए, जिससे लोहा दिखाई न दे, (जो चीज ऊपर लगी रहती है उसी की कीमत रहती है) उसकी कोई कीमत न रह जाए, इस तरह से ये जीवात्मा हो गई। शरीर को चलाने वाली, परमात्मा की अंश जीवात्मा, अब कितना भी इससे शब्द को जोड़ों, ये जुड़ती ही नहीं है। जैसे लोहा को पारस पत्थर सोना बना देता है लेकिन अगर लोहे के ऊपर गंदगी, मिट्टी लगी रहेगी तो सोना नहीं बनेगा, ऐसे ही इस जीवात्मा का हाल हो गया। पहले के समय में आत्मा को लोग जगाते थे, ध्यान लगाते थे। ध्यान लगाया जाता है सुबह-शाम, आये हुए नये लोगों को आपको ध्यान लगाना बताया जाएगा। ऐसे लोग ध्यान लगाते थे। आत्मा पर जमा कर्मों के मैल को हटाते थे तब ये शब्द को पकड़ कर के ऊपर जाती थी। तब ये जो रिद्धि-सिद्धि, लक्ष्मी हैं, ये सब मिलती थी। तो ऐसा नियम है कि जैसे चुंबक, चुंबक को खीच लेता है और अगर चुंबक को सूई से रगड़ दो तो सुई में भी चुंबकत्व शक्ति आ जाती है। फिर वो छोटी सूई को भी अपनी तरफ उठा लेती है। ऐसे ही ये शब्द इस जीवात्मा को जब खींचता था और ये शब्द से ही सब जुड़े हुए हैं, इनके लोक शब्द से ही जुड़े हुए हैं तो जब इनका (देवी-देवताओं, शक्तियों का) दर्शन होता था तो जीवात्मा के अंदर उनकी ताकत आ जाती थी। जिनको आज लोग देखे भी नहीं, उनकी पूजा करते हैं, उनको खुश करते हैं। वो जब मिल जाते थे तो अपने आप शक्ति, ताकत इसमें दे देते थे, फिर जिस चीज की आदमी इच्छा करता था उसकी वो इच्छा पूरी हो जाती थी।