धर्म-कर्म: वक़्त गुरु परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अपने बावल आश्रम में दिए संदेश में बताया कि, जैसे समुद्र पार कराने वाले को मल्लाह कहते हैं, ऐसे ही इस भवसागर से पार करने वाले कौन होते हैं? जो वक्त के मौजूदा गुरु होते हैं, वह भवसागर से पार कराते हैं। उनको याद किया जाए, उनका हाथ पकड़ा जाए, गुरु संभाल करने वाले होते हैं जब समरथ गुरु मिल जाते हैं वह हाथ पकड़ लेते हैं तब वह छोड़ते नहीं है। भगवान को इन बाहरी आंखों से देखा नहीं जा सकता है, वह तो निराकार हैं।
निराकार प्रभु को देखने के लिए गुरु से करना चाहिए प्रार्थना
निराकार वो जिनको इन बाहरी आंखों से नहीं देखा जाता है। जिनको आमने-सामने देखा जाता है, वह साकार होता है। साकार को बाहरी आंखों से और निराकार को अंदर की आंख से देखते हैं। उनको देखने का, निराकार को देखने का, निराकार को साकार में बदलने के लिए संकल्प बनाना चाहिए। संकल्प बना करके (साधना में) बैठना चाहिए। निराकार को दिखाने के लिए गुरु से प्रार्थना करना चाहिए कि- गुरु मोहे अपना रूप दिखाओ। ऐ मेरे गुरु, अब आप अपना रूप हमको अंतर का दिखाओ, फिर आप हमको आगे बढ़ाओ।
चाहे ब्रह्म या शिव के समान कोई होगा, बगैर गुरु के पार नहीं हो सकता
लेकिन जितने भी सन्त आए, उन्होंने अपने मुंह से नहीं कहा लेकिन घुमा करके कहा है- गुरु बिन भवनिधि तरे न कोई। जो विरंच शंकर सम होई।। चाहे ब्रह्म या शिव के समान कोई होगा, बगैर गुरु के पार नहीं हो सकता। तो गुरु से प्रार्थना करना चाहिए कि पहले अपना और फिर उस प्रभु का रूप दिखाओ। जब इधर से मन को हटाएंगे, उधर ध्यान लगाएंगे, गुरु का दर्शन अंदर में हो जाएगा, गुरु हाथ पकड़ लेंगे, अंदर में आने वाली बधाओं को खत्म करेंगे क्योंकि कर्मों का काटने का तरीका उन्हीं को मालूम है।
निराकार को साकार बनाने के लिए अंतर्मुखी साधना बताई गई
मान लो गुरु शरीर में एक जगह पर हैं और साधना करने वाले विभिन्न जगहों पर हैं। गुरु के दर्शन की जरूरत सबको है। तो कैसे बात हो पाएगी? अंतर में जब गुरु मिलेंगे तब। मान लो हजार स्थान पर लोग ध्यान लगाते हैं, हजार स्थान पर बाधाएं आती है तो एक जगह से गुरु कैसे टाल सकते हैं? तो निराकार को साकार बनाने के लिए अंतर्मुखी साधना बताई गई।
बाहर मुखी पूजा- संध्या, तर्पण, दान, पुण्य, हवन जप, तप, यज्ञ
बाहर मुखी पूजा क्या है? जो बहुत से लोग करते हैं जैसे संध्या, तर्पण, दान पुण्य, हवन, जप तप यज्ञ आदि सब बाहरी पूजा है। बाहर के सभी षट कर्म साकार में आता है। निराकार की पूजा करने के लिए, इसको साकार बनाने के लिए, यह जो नाम हमेशा रहा है, नित्य नाम, इसका जाप करना है, इस नाम को लेना है और ध्यान लगाना है। किसका ध्यान लगाना है?
एके साधे सब सधे, सब साधे सब जाए
एक प्रभु का ध्यान लगाना है। एक निशाना बनाना है कि हम अपने घर पहुंच जाएं। अपना घर कौन सा? जहां से फिर वापस इधर आना न हो। न स्वर्ग न बैकुंठ न ब्रह्मलोक न मृत्युलोक के नीचे पाताल लोक, अपने उस लोक, उस घर में पहुंच जाएं। इसके लिए ध्यान लगाना चाहिए और निराकार जिसको कहा गया, उसको साकार बनाना चाहिए।