धर्म कर्म: उज्जैन आश्रम पर लगे हुए साधना शिविर का एक सौ बीस घंटा पूरा हो गया। ये आपकी अखंड साधना पूरी हुई। आप लोगों ने मेहनत किया, लगन लगाया। गुरु से दया मांगी। गुरु महाराज ने बहुत से लोगों को दया दिया। बैठने वालों को सबको दया मिली। अंतर में नहीं कुछ मिला, थोड़ी देर के लिए मन को शांति ही मिली, कर्म कटे। कुछ लोग लगातार आठ घंटे, दस घंटे, बीस घंटे, चौबीस घंटे भी रिकॉर्ड बनाया। लोगों ने लगातार एक साथ बैठ के साधना किया है। यह गुरु की दया से ही होता है। इसीलिए कहा जाता है कि गुरु को हमेशा हृदय में बसाए रहना चाहिए और इसी तरह की दया सदैव मांगते रहना चाहिए।
क्योंकि जरूरत पड़ेगी आगे। किसकी जरूरत पड़ेगी? साधकों की। सब जगह साधकों की जरूरत पड़ेगी। साधक अपनी आत्मा की रक्षा तो करेगा ही करेगा लेकिन दूसरे की भी जान बचाएगा। गुरु महाराज ने जब गुलाबी पगड़ी बंधवाया था, जो गुलाबी रंग का कपड़ा आप लोगों को पहनने के लिए कहा गया कि कमर से ऊपर तक गुलाबी कपड़ा पहनो। नीचे अगर गुलाबी पहनना है, पेंट पहनना है तो आप पेंट के नीचे जो जांघिया होती है दूसरे रंग की ले लो उसको पहनो। तो यह जो गुलाबी पहनाया गया ऐसे ही गुरु महाराज ने गुलाबी पगड़ी बंधवाई थी और यह कहा था कि गुलाबी पगड़ी बांधने वालों की नजर जहां तक जाएगी कोई मरेगा नहीं। बच जाएंगे लोग। बहुत से लोगों ने देखा, आंधी-आफत जब आई, ट्रेन जब पलटी और जब मारकाट हुई तो जो उनके साथ थे, आसपास में थे, उनकी भी रक्षा हो गई। बचत हो गई।
तो साधक जो होते हैं वो दूसरे की भी जान बचाते हैं। आगे का समय तो ऐसा दिख रहा, दिखाई पड़ रहा है। खून खराबे का विदेशों में अभी बहुत खून बहेगा। आप देखना, पता करना, अस्पतालों में जगह नहीं मिलेगी लहू-लुहान जब आएंगे और जो बढ़िया सफेद चद्दर बिछी हुई, उस पर जब उनको रखेंगे तो चादरें भीग जाएंगी खून से। आप ये सुन लो प्रेमियों! भारत में भी यह दृश्य देखने को मिल सकता है। लेकिन साधक अगर सारा देश बन जाए, जितने नामदानी हैं, सब साधक बन जाए तो बहुत कुछ संकट टल सकता है और संकट आवे भी तो उसमें बचत हो सकती है। बराबर आप लोग मेहनत करते रहना।
अब यह मत सोचना कि साधना शिविर पूरी हो गई तो हम अपनी बैठक कम करते हैं। जितना बैठ सको, बैठो। यहां जो आश्रम पर रहते हो सेवा भी करते रहो। मन लगा के सेवा भी कर लोगे तो वह कम समय में ही सेवा पूरी हो जाएगी। उसमें भी गुरु मदद कर देते हैं। दूसरे से करवा देते हैं। मैंने यह देखा कि गुरु महाराज ने प्रयागराज जिनको कहते हैं आज, इलाहाबाद कहा जाता था। वहां पर गुरु महाराज ने कार्यक्रम किया था। और बहुत कुछ फैला हुआ था। मंच कुटिया और बड़ा फैलाव था। और अधिकारियों का संदेश आ गया कि महाराज जी बाढ़ आ रही है। आपका सामान तो ये बचेगा नहीं। बाढ़ में यह सामान सब टूट जाएगा।
गुरु महाराज ने कहा अच्छा! मैं अपने सामने की बात आपको बता रहा हूं। तो गुरु महाराज बैठे हुए थे। उस समय कुछ सोच रहे थे। दिन में भी सोचते रहे। सुबह ही उन्होंने चेतावनी दे दी थी कि इतने घंटे में बाढ़ आ जाएगी और वो बाढ़ चार या पांच बजे आ जाना था। फिर गुरु महाराज जब अंधेरा होने लगा तो उनसे बोले तुम यही कुटिया में रहना। यही बैठे रहना ये देखते रहना। और कुछ लोगों को लेकर के चले गए। लोगों ने देखा कि बल्लियां ऐसे हाथ से पकड़-पकड़ करके और ऐसे फेंक दे रहे हैं। तीन को ऐसे पकड़ते हैं और ऐसे उखाड़ के फेंक देते हैं। चार चार आदमी, दिखाई पड़ रहे हैं दस आदमी। अब किसी ने उसको निकाला टिन को, किसी ने बल्ली खोला।
मैंने अपनी आंखों से देखा जयगुरुदेव का नारा लगाते हुए बीस-बीस पच्चीस आदमी उधर से ऐसे बल्ली कंधे पर रख के लेकर के जा रहे हैं। उनके पैर दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। लेकिन आदमी लंबे तड़ंगे मोटे तगड़े दो बल्ली मोटी मोटी, बल्ली कंधे पर रख के लेकर के चले जा रहे हैं। कौन कराता है? गुरु कराते हैं। गुरु की दया से होता है। तो आपको समझने की जरूरत है प्रेमियों! कि थोड़ा भी मेहनत करोगे तो उसमें ज्यादा कामयाबी मिल जाएगी। ज्यादा से ज्यादा आपको यानी समय देना है। भजन में समय देना है।
बाकी ये जो दुनिया का काम है, इंतजाम है, यह तो सब करने वाला, कराने वाला कौन है? वही मालिक है। वह आपसे करा लेगा नहीं वो और किसी से करा लेगा। लेकिन जिम्मेदारी जो आप लोग लेना उसको निभाना। यह नहीं कि गुरु महाराज और से करा लेंगे उसको। आप लोग निभाना। और देखो साधकों! थोड़ा बच के रहना। कर्म बहुत जल्दी आते हैं। कैसे कर्म आ जाते हैं? कुछ अपने आ जाते हैं। कोई दूसरों के भी आ जाते हैं। मैं तो भोग रहा हूं, उसी को बुढ़ापे में झेल रहा हूं। ये बीमारी तकलीफ झेल रहा हूं। आपके बीच में ज्यादा नहीं बैठ पाया। आता जाता तो रहा लेकिन इच्छा बहुत रही बैठने की। लेकिन शरीर ने साथ नहीं दिया, कर्मों का चक्कर। तो कर्म से बचना।
कोशिश यही करो कि मेहनत का ही अपने खाओ। और जो खाओ उससे ज्यादा मेहनत करो। चाहे आश्रम पर रहो, चाहे अपने घर में रहो। कहीं भी यानी समझो रहो। आना जाना कम करो। जहां जरूरत हो वहीं आओ जाओ। खाने पीने पर जगह-जगह जो खा पी लेते हो, उस पर परहेज रखो।तो खाने पीने पर ध्यान रखना और स्वास्थ्य का भी। असर होता है। संपर्क का असर होता है। आंखों में आंखों के डालने से कर्म आते जाते हैं। उससे भी कोशिश यही करना कि जो बहुत कर्मी जीव हैं, उनसे बचना है।
देखो प्रेमियों! गुरु महाराज भी इस पक्ष में नहीं रहे। पहले के भी जितने भी लोग आए गुरु लोग, जो समर्थ रहे, कोई इस पक्ष में नहीं रहे कि संतान की उत्पत्ति ना की जाए। बच्चे ना पैदा किए जाए। गृहस्थी का कोई काम ना किया जाए। ऐसा किसी का संदेश नहीं रहा। तो हम ये नहीं चाहते हैं कि गृहस्थी छोड़ दो आप। और काम को आप छोड़ दो जो आप समझो। आश्रम के बाहर रहते हो, आते जाते हो, वो लोग हो या इस संदेश को जो लोग आप बाहर सतसंगी हो, सुन रहे हो तो आप सब काम करो।
लेकिन सोच समझ करके करो। बच्चा पैदा करो तो आप अपनी पत्नी से पैदा करो। दूसरे की पत्नी और दूसरे की बच्चियों से दूर रहो। उसका भी बड़ा भारी कर्म आता है। तो कर्म आपके आने ना पावे, इकट्ठा ना होने पावे। क्योंकि इसमें बहुत से लोगों ने अनुभव किया। अंतर की दौलत उनको मिली। अंतर में उनको मिला ही मिला, जो लगातार लगन और प्रेम के साथ लगे रहे। यह गुरु से प्रार्थना करते रहे कि गुरु महाराज हमको दे दो कुछ। आपके हाथ में बहुत कुछ है। हमको दे दो तो सबको मिला है। ऐसी बात नहीं है।
तो प्रेमियों! बराबर साधना में लगे रहो। सेवा में आप आश्रम वासी लगे रहो। जो भी मोटा महीन भंडारे में अपने मिल जाए उसको आप ले लो। अगर जगना है तो गर्मी है और रात को भजन करना है तो गर्मी है। उस गर्मी में आप थोड़ा कम खाओ तो रात को जग के भजन कर लोगे। देखो इसमें नींद नहीं आई। लोगों को टट्टी पेशाब नहीं महसूस हुआ। जो ज्यादा देर बैठे बीस घंटे, चौबीस घंटे बैठे, उनको नहीं महसूस हुआ। इसी तरह से आपको थकावट नहीं महसूस होगी।
आप समझो कि दिन में काम भी कर सकते हो। थोड़ी देर के लिए भी बैठ गए। आंख बंद कर दिया। नींद आ गई तो उसी में नींद पूरी हो जाती है। इस तरह से यानी दोनों काम करना है। सेवा भी करना है और भजन भी करना है। घर में रहो। बाल बच्चों की भी देखरेख कर लो। वो भी एक सेवा है और भजन भी करो। तो इस पर ज्यादा जोर दो आप लोग और जो भी मिले भजन की बात करो उससे। और जो जिनके अंदर कुछ आ गया है, वो छुपा करके रहो, अभी बता दिया जाए तो लुटेरे बहुत तैयार हैं, बहुत तैयार हैं लुटेरे। कौन लुटेरे? अंतर की दौलत को लुटने के लुटेरे तैयार हैं और वो ऐसे लूट लेंगे कि पता भी नहीं चलेगा और खजाना आपका अंदर का खाली हो जाएगा।
इसलिए पचाना भी है, छुपा के भी रहना है आपको। बच के भी रहना है आपको। जरूरत पड़े तो आप समझा दो, लोगों को उपदेश कर दो, थोड़ी देर का दो चार मिनट का आप भजन के बारे में बता दो, आप ध्यान के बारे में बता दो, लेकिन इस तरह का बताओ कि उसको पता ना चले कि अपनी देखी सुनी हुई बात बता रहे हैं। ऐसा समझा कर उससे करा लो। वो जब करने लगेगा तो उसको खुद को पता चल जाएगा कि साधक है या हमसे ज्यादा हैं, आगे हैं, कम हैं। यह सब वो बता देगा, उसको खुद को पता चल जाएगा। क्योंकि साधक साधक को पहचान जाता है। तो अब आप इस बात को समझो प्रेमियों! कि यह एक सौ बीस घंटे की अखंड साधना शिविर का समय समाप्त हो गया है। अब जरूरत पड़ेगी तो फिर लगा दिया जाएगा। जरूरत पड़ेगी फिर लगा दिया जाएगा। लेकिन अभी तो यह समाप्त हो गया।