लखनऊ। इतनी महंगाई है कि बाजार से कुछ लाता हूं, अपने बच्चों में उसे बांट के शर्माता हूं’ किसी शायर का यह शेर मौजूदा समय में बिल्कुल सटीक बैठता है। महंगाई अपने चरम पर है, जिससे लोगों को अपना घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है। दिन रात की जी तोड़ मेहनत के बावजूद कमाई इतनी नहीं हो पा रही कि दो जून की रोटी भी सही से मयस्सर हो सके। दो जून की रोटी जुटाने की जद्दोजहद इंसान का रोजाना का काम है, लेकिन कोरोना ने उस पर भी ग्रहण लगा दिया है। आलम यह है कि अब लोगों को भीख मांग कर या फिर दूसरों के आगे हाथ फैलाकर किसी तरह गुजारा करना पड़ रहा है। बमुश्किल लोगों को दो जून की रोटी की व्यवस्था हो पा रही है।
हर रोज घर की दहलीज लांघकर दो जून की रोटी के लिए इंसान जी तोड़ मेहनत करता है, लेकिन मुफलिसी के दौर में घर चलाना काफी मुश्किल हो रहा है। आलम यह है कि मेहनत करने के बावजूद दो जून की रोटी जुटा पाना किसी बड़ी सफलता को प्राप्त कर लेने से कम नहीं रह गया है। तमाम ऐसे घर हैं जहां बच्चों को भूखे पेट ही सोना पड़ता है या फिर मां बाप को उधार लेकर किसी तरह उनका पेट भरना पड़ता है।
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महंगाई के साथ ही बेरोजगारी का आलम यह है कि पढ़े-लिखों को भी रोजगार नहीं मिल रहा है. ऐसे में उनके सामने भी दो जून की रोटी जुटा पाने का बड़ा संकट खड़ा है। शहर में गरीब, मजदूर अपने पेट की आग शांत करने के लिए लंबी-लंबी कतारों में लगकर खाना मिलने का इंतजार करते हैं। कोरोना से हालत खस्ता है। ऐसे में शहर में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो लोगों को मुफ्त में खाना खिला कर उनकी भूख शांत करते हैं।https://gknewslive.com