लखनऊ। हिन्दी भाषा हिन्दुस्तान की पहचान है, जिसे देश में सबसे ज्यादा बोला जाता है। हमारे देश में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा हासिल है, राष्ट्रभाषा के प्रचार और प्रसार के लिए ही 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिंदी के प्रचार के लिए तत्कालीन भारतीय सरकार ने 14 सितंबर 1949 से हर साल 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था। भारत में ज्यादातर क्षेत्रों में हिन्दी बोली जाती है। इसलिए केन्द्र सरकार की कामकाज की भाषा हिन्दी होनी चाहिए।
अब सवाल यह उठता है कि हिन्दी दिवस मनाने से राष्ट्रभाषा का प्रचार और प्रसार बढ़ा है क्या? अगर बढ़ा है तो गांधी से लेकर सुभाष चंद्र बोस तक सब ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की मांग की थी, लेकिन आज तक यह संविधान की भाषा क्यों नहीं बन सकी? ऐसे बहुत सारे सवाल है जिनका जवाब साहित्यकार और शिक्षाविद दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर राजेंद्र गौतम दे रहे हैं कि क्या सच में हिन्दी दिवस मनाने से हिन्दी भाषा की पहचान बढ़ी है।
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हिन्दी दिवस औपचारिकता बनकर रह गया है
हिन्दी दिवस सिर्फ कुछ स्कूलों और सरकारी कार्यालयों तक सिमट कर रह गया है। जहां एक हफ्ते को हिन्दी पखवाड़े का नाम देकर उत्सव का रूप दे दिया जाता है। सरकारी से लेकर प्राइवेट दफ्तरों में हमारी कामकाज की भाषा अंग्रेजी है, और हम राष्ट्रभाषा के प्रचार-प्रसार की बात करते हैं। जहां एक ओर देश हिन्दी भक्त होने का दावा कर रहा है। वहीं दूसरी तरफ हिन्दी को दरकिनार भी कर रहा है। सोचने वाली बात है कि जिस देश में गाड़ी पर हिंदी में नंबर लिखने पर चालान हो जाता है, 90 %लोग अँग्रेजी में हस्ताक्षर करते है, वहीं जिस देश की सर्वोच्च अदालत में न्याय के लिए बहस हिंदी में नहीं सुनी जाती है। उस देश की हिंदी भाषा कहने मात्र मातृ भाषा है।https://gknewslive.com