लखनऊ। दुःखहर्ता अंतर्यामी सर्वत्र व्याप्त सर्व समर्थ त्रिकालदर्शी महापुरुष व पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अपने सत्संग में बताया कि मृत्यु के बाद मनुष्य शरीर यहीं छूट जाता है। जीवात्मा को पिशाच के शरीर में बन्द करते है। पिशाच का शरीर मनुष्य शरीर जैसा ही रहता है और उसे ले जाकर के यमराज के सामने खड़ा कर देते हैं। आप कोई भले कहो कि जो हम करते हैं, उसको कोई देख नहीं रहा। लेकिन जिसको आप नहीं देख पा रहे हो, वह आपके अच्छे-बुरे कर्मों को 24 घंटा देख रहा है। उससे कोई चीज छुपी नहीं है। उसके पास सब नोट हो रहा है। उसके कंप्यूटर में सब फिट हो रहा है। उसको आप छिपा नहीं सकते हो। जब शरीर छूटेगा तब उसको आप देखोगे। अभी इन बाहरी आंखों से उसको देख नहीं सकते हो।

आपकी दिव्य दृष्टि, तीसरी आंख खोलने वाले सतगुरु मिल जाये तो आप देखने लगोगे कि किस तरह से जीवों को नरकों में मिलती है सजा
यदि आपकी दिव्य दृष्टि, तीसरी आंख, शिव नेत्र, थर्ड आई खुल जाय तो आप देखने लग जाओ तब आपको सब पता चल जाएगा। उसको खोलने वाला कोई मिला नहीं, बताने वाला मिला नहीं। आपने कोशिश नहीं किया, आप कैसे देख पाओगे? लेकिन वह आपके सब क्रियाकलाप को देखता रहता है। उसके पास सब नोट होता रहता है। जब यह शरीर छूटता है तो यमराज के दूत घसीटते हुए, पत्थर पर रगड़ते हुए, भालों पर खींचते हुए ले जाते हैं। लहू लुहान खड़ा कर देते हैं यमराज के सामने। वो तुरंत सजा बोल देता है और तत्काल सजा मिलना शुरू हो जाता है। कोई कितना भी रोए, चिल्लाए लेकिन उस समय पर कोई माफी नहीं मिलती है।

देखो प्रेमियों! माफी का समय मनुष्य शरीर में रहता है और पाप मानव शरीर से ही होते हैं। मनुष्य शरीर से ही ऐसे कर्म किये जा सकते हैं कि हमारे पाप क्षमा हो जाएं, खत्म हो जाएं। जब कोई जानकार मिलता है, बताता है कि तुम्हारे जान-अनजान में बने जो पाप कर्म है वो ऐसे, इस तरीके से खत्म होंगे तब यह पाप कर्म कटते हैं, नहीं तो पाप की सजा भोगनी पड़ती है।

मनुष्य शरीर छूटने के बाद माफी का समय खत्म फिर तो सिर्फ मिलती है कर्मों की सजा
जब कोई जिद करता है कि हमने कोई पाप नहीं कियातो दिखा देता है कि बचपन से लेकर बुढ़ापे तक तुमने यह सब बुराइयां की। जीव अपनी आंखों से देखता है तब वह माफी मांगता है लेकिन माफी का वक्त उस समय खत्म हो जाता है। शरीर से ही माफी मांगने का समय होता है। फिर तो सजा मिल जाती है। बड़ी मार पड़ती है। नरकों में काटे जाते, गलाए जाते, जलाए जा,ते तपाए जाते हैं।

42 प्रकार के नरकों में एक-दो दिन नहीं लाखों-करोड़ों वर्षों तक रहना पड़ता है
42 प्रकार के नर्क है। वहां एक-दो दिन बल्कि लाखों करोड़ों वर्षों तक किसी-किसी को रह जाना पड़ता है तब वहां से छुटकारा मिलता है। फिर कीड़ा-मकोड़ा, सांप, बिच्छू, गोजर के शरीर में सजा भोगने के लिए जीवात्मा डाल दी जाती है। जब वहां से छुटकारा मिलता है तो 9 महीना मां के पेट में उल्टा लटकना पड़ता है। हम सब लोग एक दिन मां के पेट में उल्टे टँगे हुए थे। मां की पेट की मल-मूत्र की बदबू नाक के सामने बराबर आ रही थी। बड़ी तकलीफ मां के पेट में। इधर-उधर जा नहीं सकते, बंधन चारों तरफ से थे। हिलना-डुलना भी मुश्किल रहता है। 9 महीना मां के पेट में रहना पड़ता है उसके बाद फिर बाहर निकाले जाते हैं। बाहर निकल कर मनुष्य शरीर भी मिल गया लेकिन कोई रास्ता बताने वाला नहीं मिला तो लौटकर इसी चौरासी लाख योनियों में और नर्कों में सजा भोगने के लिए आना पड़ता है। इसलिए समय रहते किसी ऐसे पूरे गुरु की, आनकर की खोज कर लो जो इस चौरासी के चक्कर से छुड़ा सके।

सन्त उमाकान्त जी के वचन
देवी-देवता भी मनुष्य शरीर पाने के लिए तरसते रहते हैं। मनुष्य शरीर प्रभु प्राप्ति के लिए मिला है। जिस घर को बनाते हो, मृत्यु के बाद उसी घर के दरवाजे से एक दिन घर के ही लोग निकाल बाहर कर देंगे। यदि ध्यान नहीं दोगे तो शरीर को चलाने वाली जीवात्मा नरकों में चली जायेगी। बिना घी, बत्ती का अंतर में जलते दीपकों को देखना ही असली दिवाली है। https://gknewslive.com

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