लखनऊ। दुःखहर्ता अंतर्यामी सर्वत्र व्याप्त सर्व समर्थ त्रिकालदर्शी महापुरुष व पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अपने सत्संग में बताया कि जब महापुरुष जब इस धरती पर आते हैं तो जल्दी लोग पहचान नहीं पाते हैं। काम करने के लिए औतारी शक्तियां आई। जल्दी राम को लोगों ने नहीं पहचाना। जंगल जाते समय उन्होंने कहा कि धर्म की स्थापना के लिए जा रहा हूं, मेरा साथ दे दो। जितने भी पढ़े-लिखे लोग, ज्योतिष, विद्वान ने राम का साथ नहीं दिए। उनको काम करना था इसलिए उन्होंने बंदर, भालूओं को इकट्ठा किया और गुरु के शरण में रहकर के जो विद्या सीखी थी, रिद्धि-सिद्धि प्राप्त की थी, वही उनमें भर दिया। उन्हीं के द्वारा धर्म की स्थापना करके लौट कर आए और राज्य की व्यवस्था सही कर दिया। एक प्रजा के कहने पर अपनी सती जैसी सीता पत्नी को घर से निकाल दिया। तब उनको राजा राम के बजाय भगवान राम कहने लग गए। जब पिता के आदेश पर राजगद्दी पर ठोकर मारा और जंगल जाने के लिए तैयार हुए तब मर्यादा पुरुषोत्तम राम उनका नाम पड़ा कि पिता के आदेश का पालन किया। इस आदर्श को अपनाना चाहिए लोगों को। राम की मूर्ति की पूजा कर लो और रामलीला कर लो, राम पर मरने-मिटने के लिए तैयार हो जाओ- इसको भक्ति नहीं कहते, भक्ति उसको कहते हैं कि उनके आदर्शों पर चलें।

राम पिता के आदेश पर और लक्ष्मण भाई के प्रेम में जंगल चले गए थे और आजकल

आजकल अपने मां-बाप को लोग घर से बाहर निकाल दे रहे हैं। वह पिता के आदेश पर देखो राजगद्दी पर ठोकर मार दिए थे। तो यह अनुकरण करना चाहिए, सीख लेनी चाहिए जितने भी राम के भक्त हो। लेकिन अगर सीख न लो तो भक्ति नहीं कहीं जाएगी। इस वक्त पर भाई-भाई के खून का प्यासा हो रहा। और देखो एक लक्ष्मण भाई थे जो राम के लिए जंगल चले गए थे तो इनका अनुकरण करना चाहिए।

आज माताओं-बहनों को सीता माता का अनुकरण करना चाहिये
सीता को माता कहते हैं। अगर चाहते तो हनुमान जी अशोक वाटिका से सीता को हथेली पर बैठा कर ले करके चले आते लेकिन सीता मां आई नहीं उनके साथ।
एकइ धर्म एक ब्रत नेमा।
कायँ बचन मन पति पद प्रेमा।।
सीता माता अपने पति के अलावा और किसी को कुछ समझती नहीं थी। उन्होंने सोचा अगर मेरे से उनको प्रेम होगा तो आकर मुझको ले जाएंगे। अब आप उनके नाम पर रामलीला करो, रासलीला करो, उनके नाम पर मरो-मिटो तो यह क्या है? यह बुद्धिमानी नहीं है। पहचानो। उनकी पहचान तभी होगी जब उनके आदर्शों पर चलोगे।

तकलीफ तो इस बात की है कि मौके पर महापुरुषों को किसी ने पहचाना नहीं
तकलीफ की बात यही रही, मौके पर उनको लोगों ने पहचाना नहीं। कृष्ण को लोगों ने पहचाना नहीं। बराबर जितने भी महापुरुष आये, सब लोगों ने समझाया-बताया। पहले यही कहते हैं। मान जाओ, मान जाओ नहीं तो कुदरत सजा दे देगी। कुदरत के खिलाफ काम मत करो। प्रकृति के प्रतिकूल काम मत करो। जब लोग नहीं मानते हैं और सजा मिलने लगती है तब फिर उनको पुकारते हैं और तब तक फिर देर हो जाती है। ऐसे ही कृष्ण ने भी समझाया। दे दो, हक मत छीनो। अरे कौरवों, पांडवों का भी कुछ हक होता है। लेकिन उन्होंने कहा कि सुई के नोंक के बराबर भी जमीन नहीं देंगे तो देखो 18 दिन में क्या हुआ? 11 अक्षुणि सेना खत्म हो गई।

मोहम्मद साहब ने कभी नही सिखाया कि किसी को जान से मार दो, हिंसा हत्या करो
यही हुजूर मोहम्मद साहब थे। उनको भी लोगों ने नहीं पहचाना। दर-बदर ठोकरें खानी पड़ी, बकरियां चरानी पड़ी। मक्का से मदीना भागना पड़ा। अब तो उनके लिए रोना-धोना, मरना-मिटना हो रहा है। यह कभी भी मोहम्मद साहब, राम, कृष्ण ने नहीं सिखाया कि किसी को जान से मार दो, हिंसा-हत्या करो। सब दयावान थे। लड़का गलती करता है तो कान ऐठ देते हैं। लेकिन लड़के का गर्दन, कान नहीं काट देते हैं। अब तो लोगों ने तो यह सोच लिया कि उनके नाम पर काट देंगे, मार देंगे, सजा मिल जाएगी इसलिए ऐसा कभी मत करना। महापुरुष जब आते हैं जल्दी लोग नहीं पहचान पाते। जब चले जाते हैं तब रामलीला, रासलीला करते हैं, मंदिर-मस्जिद बनाते हैं।

मूर्ति और फ़ोटो की पूजा करके कोई पार नहीं हो सकता
उनके नाम पर किसी की सोच अगर यह बन जाए कि इनकी मूर्ति बना करके, हम पूजा करके पार हो जाएंगे या इनका रूप कोई आदमी बना लिया, उसका फोटो खींच लिया, कैलेंडर बन कर गया उसकी पूजा करके हम पार हो जाएंगे तो यह तो हमारे समझ में नहीं आ रहा है। इसलिए मौजूदा महापुरुष की खोज करनी चाहिए।

सन्त उमाकान्त जी के वचन
कोटि जन्मों के पुण्य जब इकट्ठा होते हैं तब सन्त दर्शन, सतसंग और नामदान का लाभ मिलता है।हुनर, ज्ञान संकट में काम आ जाता है, सीखना चाहिए। ज्ञान बांटने की चीज है, इस दुनिया संसार से लेकर चले जाने की नहीं। गुरु ऊपर के लोकों में हो रहे जलवा को दिखाने के लिए बेताब रहते हैं।अगर सतगुरु की दया हो जाए तो कई जन्मों का कर्म-कर्जा अदा करा सकते हैं।

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