उत्तर प्रदेश : शरीर से की जाने वाली बाहरी जड़ पूजा पाठ जो केवल थोड़ा बहुत अस्थाई भौतिक लाभ दे पाती है, उससे आगे बढ़कर चेतन जीवात्मा से चेतन परमात्मा की रूहानी पूजा इबादत कर भौतिक और आध्यात्मिक लाभ दोनों दिलाने वाले, रूढ़िवादिता में ही अपना बेशकीमती समय न गवांने की शिक्षा देने वाले, सन्त की शरण में जाकर अपने पापों, कष्टों को दूर कर सुख शांति का अनुभव करने का उपाय बताने वाले, इस समय धरती पर मनुष्य शरीर में मौजूद वक़्त के महापुरुष सन्त सतगुरु दुःखहर्ता त्रिकालदर्शी परम दयालु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने पौष पूर्णिमा के अवसर पर उज्जैन (म.प्र.) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर प्रसारित संदेश में बताया कि,
स्नान करने के बाद सन्तों के स्थान पर लोग जाते, सत्संग सुनते समझते और दर्शन करते थे।
जब लोग सन्तों के बताए रास्ते पर चलते थे तो, उनका गृहस्थ आश्रम सुखमय बीतता था।
जन्मों के पाप सच्चे सन्त के आंखों में देखने, प्रार्थना करने, पर उनकी दया से कट जाते हैं।
घाटा चोर जुआरी का होता है, सत्संग में जाने से अच्छे सच्चे धार्मिक विचारशील का नहीं।
अज्ञानता में आदमी घर जायदाद जोड़ता जाता है और एक दिन सब छोड़ कर चला जाता है।
तो असली चीज पकड़ो, अपनी आत्मा का कल्याण करो।
बाबा उमाकांत जी महाराज आगे कहते हैं की, साधक के सभी कार्य अंतःकरण की शुद्धि के लिए होने चाहिए। कर्मों के चक्कर से जीव अनेकों शरीर धारण करता है। चरित्रहीन व्यक्ति बगैर मणि के सर्प की तरह से हो जाता है। झूठ बोली हुई बात कुछ समय के बाद भला दी जाती है और सत्य बात हमेशा याद रहती है, इसलिए सत्य ही बोलो।