लखनऊ: इस समय के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु जिनके हाथ में अभी पुराने सभी गुरु सन्तों के अभी तक उद्धार न पाए सभी जीवों का चार्ज है, जो बाहर से साधारण मनुष्य दिखते हैं लेकिन उस सर्वशक्तिमान प्रभु की असीम ताकत को अपने में दबाए छुपाये हैं, जो अब जीवों पर ज्यादा दया करके चार की बजाय एक ही जन्म में निज घर सतलोक जयगुरुदेव धाम ले जाना चाहते हैं, जो अभी जीवित मनुष्य शरीर में हैं यानी वक़्त के गुरु हैं और केवल जिन्हें अभी वो अनमोल रूहानी दौलत नामदान देने का अधिकार है ऐसे समय के समर्थ सन्त सतगुरु त्रिकालदर्शी उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने  जालंधर (पंजाब) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जीवात्मा, परमात्मा की अंश है।

अहम ब्रम्हास्मि की स्थिति क्या है

यह भूल गई अपनी ताकत को, रूप को। जब अंतर में चरण कमल का दर्शन करती है अपने रूप को देखती है तो देख करके जैसे लोगों ने कहा अहम् ब्रम्हास्मि। पावर का इजहार जब हुआ तब कहा मैं ही सब कुछ हूं। अंतर में ‘गुरु मोहे अपना रूप दिखाओ’ अपना रूप, गुरु का रूप क्योंकि बाहर से हाड़ मांस के शरीर में गुरु की पहचान नहीं हो पाती है, अंदर में होती है क्योंकि गुरु एक शक्ति पावर होता है जिसे प्रभु समय-समय पर उसे देता जिससे काम लेना होता है।

बहुत से जीव पिछले सन्तों के अपनाए हुए अब भी पड़े हुए हैं

देखो यह पंजाब सन्तों गुरुओं की भूमि है। पंजाब में कितने गुरु सन्त यहां पर आये। उनके अपनाये हुए जीव अभी भी पड़े हुए हैं। संस्कार की वजह से कर्म उनका खराब नहीं बनता है लेकिन कर्म सब खत्म भी नहीं होते हैं कि जिससे मुक्ति हो जाए तो मनुष्य शरीर पा जाते हैं। जब पा जाते हैं तो उनका चार्ज उस वक्त के गुरु को दे दिया करते हैं। उसके (दूसरे गुरु) के सामने जब उद्धार नही हुआ, अपने वतन अपने मालिक के पास नही पहुँच पाया तो वे तीसरे, चौथे को चार्ज देकर जाते हैं। इसीलिए कहा गया
प्रथम जन्म गुरु भक्ति कर, दुसर जन्मे नाम।
तीसर जन्मे मुक्त पद, चौथे में निज धाम।।
चार-चार जन्म लग जाता है पार होने में तो तो एक दूसरे को चार्ज देते हुए जाते हैं।

सतगुरु मनुष्य शरीर में ही साधारण रूप में रहते हैं

गुरु की पहचान अंदर मे होती है। बाकी मां के पेट से गुरु भी पैदा होते हैं। साधारण लोगों के समान उनका भी हाथ, पैर, आंख, मुंह, कान खून मांस टट्टी पेशाब होता हैं, धरती का अन्न खाते, आसमान के नीचे रहते हैं लेकिन शक्ति अलग होती है। जब समरथ गुरु मिलते हैं जब वह बताते हैं इस तरह से प्रभु को पुकारो, इस नाम से इस समय उद्धार होगा, जिसके लिए गोस्वामी जी ने कहा-
कलयुग योग न यज्ञ न जाना।
एक आधार नाम गुण गाना।।
केवल एक मात्र नाम के आधार से उद्धार होगा।
कलयुग केवल नाम अधारा।
सुमिर सुमिर नर उतरिह पारा।।
जिसके लिए संतों और अन्य लोगों ने कहा।
कोटि नाम संसार में, ताते मुक्ति न होय।
आदि नाम जो गुप्त जपे, बिरला बूझे कोय।।
जब आदि नाम की जानकारी हो जाती है, उस नाम को याद करते, उस नाम से प्रभु को पुकारते तो उससे ताकत आ जाती है, उससे अंदर में गुरु की पहचान भी हो जाती

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