लखनऊ : लखनऊ हाईकोर्ट की पीठ ने 9 साल पुराने मामले में यूपी के राजनीतिक दलों- भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस के साथ ही मुख्य चुनाव आयुक्त को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। बता दें कि नौ साल पहले पारित किए गए अपने अंतरिम आदेश पर कोई कार्रवाई नहीं होने के बाद हाईकोर्ट ने नए नोटिस जारी किए हैं। कोर्ट ने राजनीतिक दलों से जवाब मांगा है कि राज्य में जाति आधारित रैलियों पर हमेशा के लिए पूरी तरह से क्यों नहीं रोक लगा दिया जाना चाहिए। इस मामले के उल्लंघन पर मुख्य चुनाव आयुक्त को आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करनी चाहिए।

क्या था पूरा मामला:-

साल 2013 में हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी। जिसमे याचिकाकर्ता का कहना था की, बहुसंख्यक समूहों के वोटरों को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों की जाति आधारित रैलियों के कारण देश में जातीय अल्पसंख्यकों को अपने आप में दूसरे दर्जे के नागरिकों की श्रेणी में ला दिया गया है। स्पष्ट संवैधानिक प्रावधानों और उसमें निहित मौलिक अधिकारों के बावजूद, वे वोट की राजनीति के नंबर गेम में नुकसानदेह स्थिति में रखे जाने के कारण निराश और विश्वासघात महसूस कर रहे हैं।

इस याचिका की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने पारित अपने आदेश में कहा था कि जाति प्रथा समाज को विभाजित करता है और इससे भेदभाव उत्पन्न होता है। जाति आधारित रैलियों की अनुमति देना संविधान की भावना, मौलिक अधिकारों व दायित्वों का उल्लंघन है। 11 जुलाई 2013 को मामले की सुनवाई के बाद कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में जाति आधारित रैलियों के आयोजन पर अंतरिम रोक लगा दी थी। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की प्रमुख राजनीतिक दलों- भाजपा, कांग्रेस, सपा और बसपा को नोटिस जारी कर इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया देने को कहा था। 9 साल बाद भी किसी राजनीतिक दल और मुख्य चुनाव आयुक्त की ओर से कोई जवाब न मिलने पर चिंता जताते हुए कोर्ट ने दुबारा नोटिस जारीकर सभी राजनीतिक दलों और मुख्य चुनाव आयुक्त को 15 दिसंबर तक जवाब देने के निर्देश दिए है।

 

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