लखनऊ: उत्तराखंड का ऐतिहासिक शहर जोशीमठ इन दिनों सुर्खियों में छाया हुआ है। ‘गेटवे ऑफ हिमालय’ के नाम से मशहूर जोशीमठ, जिसे ज्योतिर्मठ के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखंड के चमोली जिले में एक शहर और एक नगरपालिका बोर्ड है। यह 6150 फीट (1875 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है जो बद्रीनाथ जैसे तीर्थ केंद्रों का प्रवेश द्वार भी है। यह आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार प्रमुख पीठों में से एक है। धार्मिक, पौराणिक और एतिहासिक शहर होने के साथ ही यह इलाका सामरिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है।
जोशीमठ पल-पल धंस रही है। हालात काफी गंभीर हो चुके हैं। जोशीमठ की एक बड़ी आबादी विस्थापित होने के कगार पर पहुंच चुकी है। मकानों में दरार आने के बाद लोग उसे खाली कर चुके हैं। प्रशासन ने ऐसे भवनों को गिराने का काम शुरू कर दिया है।
पहले फेज में उन मकानों को गिराया जा रहा है, जो डेंजर जोन में रखे गए हैं। मिली जानकारी के मुताबिक, घरों को गिराने का काम सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CBRI) के निगरानी में हो रहा है। वहीं, केंद्र सरकार जोशीमठ की स्थिति पर लगातार नजर बनाए हुए है। मंगलवार को गृह मंत्रालय की एक टीम जोशीमठ आ रही है, जो लैंडस्लाइड से हुए नुकसान का जायजा लेगी। इससे पहले सोमवार को भी केंद्र की एक टीम यहां आई थी।
तीन जोन में बंटे जोशीमठ के मकान
जोशीमठ के अस्तित्व पर मंडराते खतरे के बीच राहत एवं बचाव कार्य तेज कर दिया गया है। शहर के 600 से अधिक मकानों में दरार पड़ चुकी है। इन्हें तीन जोन में बांटा गया है। ये हैं – डेंजर, बफर और सेफ जोन। डेंजर जोन में ऐसे मकान आते हैं, जो अधिक जर्जर हैं और अब रहने लायक नहीं बचे हैं। ऐसे मकानों को मैन्युअली गिराया जा रहा है। विशेषज्ञों की एक टीम दरार वाले भवनों को गिराने की सिफारिश कर चुकी है।