लखनऊ : बाहर के बजाय अंदर की भावना को महत्त्व देने वाले, दिखावे से दूर रहने की शिक्षा देने वाले, जिन पर निर्भर रहने वाले, जिनके आदेश को मानने वाले की गृहस्थी की जिम्मेदारी लेने वाले, समय को सम्मान देने कि बात बताने वाले इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बावल आश्रम, रेवाड़ी (हरियाणा) में दिये संदेश में बताया कि सन्त न देखे चाल कुचाल, वह देखे अंतर का हाल। देखो कुछ अज्ञानता में गलती होती है और कुछ न जानकारी में गलती होती है। न जानकारी में जब गलती बन जाती है तब सन्त उस पर ध्यान नहीं देते हैं। वो तो भाव देखते हैं कि इसका भाव क्या है। करना ये चाहता था, इच्छा ये थी लेकिन न जानकारी में ऐसा हो गया तो उस पर ध्यान नहीं देते हैं बल्कि और समझा देते हैं। तो उन्होंने अंतर का भाव देखा कि यह प्रेमी है, सेवाभाव है इसमें। एक तो होती है फॉर्मेलिटी यानी औपचारिकता जैसे आओ बैठो पानी पी लो, अरे चाय कॉफी मंगा लो। समझ लो कह ही रहा है, मंगाना नहीं है। और अगर पूछ लिया और उसके बाद तुरंत लाने गया, नहीं कुछ है तो पानी का गिलास ला कर रख दिया कि भाई पानी पियो तो समझो इसके अंदर सेवाभाव है। तो दिखावे की सेवा नहीं होती है। दिखावे का कोई काम नहीं होता। संगत में तो दिखावे का कोई काम करना ही नहीं चाहिए। बहुत से लोग मिट्टी लगा लेते हैं, जब धूप होती है तो (थोड़ा) पसीना बहा कर सामने आकर खड़े हो जाते हैं (कि हमने) बहुत मेहनत किया। मेहनत करने वाले को कहाँ ध्यान है कि हम क्या कर रहे हैं? हमें कौन देख रहा है? उसको तो काम पूरा करना है। सन्तमत में दिखावे का कोई काम नहीं करना चाहिए।

गुरु लोगों की गृहस्थी की जिम्मेदारी कब लेते हैं:-

जब सब कुछ गुरु को, मालिक को सौंप देते हैं, गुरु की जिम्मेदारी होती है उनको रोटी खिलाने की, उनको सोने की जगह देने की। जब आदमी अपने बल पर सब करता है तब वह ढीले पड़ते हैं और आदमी सुलझा नहीं सकता है। यह काल और माया का देश है। यहां की व्यवस्था जल्दी सुलझती नहीं है तो आदमी सुलझा नहीं पाता है।

तकलीफ में सतसंगियों का मन संकल्प-विकल्प करने लगता है:-

महाराज जी ने बताया कि बहुत से सतसंगियों का मन तकलीफ में संकल्प-विकल्प करने लगता है कि गुरु समरथ, सच्चे हैं या नहीं है। जयगुरुदेव बोलने पर भी तकलीफ नहीं जाती है। भजन, सुमिरन भी करता हूं, प्रचार में भी जाता हूं लेकिन कुछ न कुछ समस्या आ जाती है। चलो अब हम जाएंगे, समस्या को सुलझायेगे, छोड़ो इसको। अब यह नहीं देखते हो कि कर्म तुमने कैसे-कैसे इकट्टा कर रखा है। कुछ कर्म तो जान में आते हैं और कुछ अनजान में आ जाते हैं। तो बहुत से कर्म अनजान में आ जाते हैं तो कर्मों को भोगना पड़ता है।

समय निकला जा रहा है:-

महाराज जी ने आगे बताया कि इस बात की गारंटी जब हो गई, सतसंग सुनते-सुनते, जो आप पुराने लोग हो, कि गुरु ही पतवार होते हैं, गुरु ही खेवनहार होते हैं, गुरु ही संभालने वाले होते हैं, गुरु ही सब कुछ होते हैं। गुरु जब समरथ मिल जाते हैं तब समझो सब काम बन जाता है। फिर भी गुरु पर विश्वास नहीं हो पा रहा है, उनसे प्रेम नहीं हो रहा है, श्रद्धा भाव आपका नहीं जग रहा है। कहने का मतलब यह समय निकला जा रहा है। समय किसी का इंतजार नहीं करता है। परिवर्तनशील संसार में बदलाव होता रहता है, कोई रोक नहीं सकता है। समय आपका इंतजार करेगा? नहीं करेगा। जो समय से चलता है, समय से सब काम कर लेता है, उसका काम पिछड़ता नहीं है बल्कि जैसे अच्छे बच्चे पाठ को पहले से पढ़ कर विद्यालय जाते हैं और मास्टर जी लोग जब पढ़ा देते हैं तो वही याद हो जाता है। ऐसा भी लड़का हमने देखा जो नोट्स बनाता ही नहीं था। नोट्स मतलब लिखना। घर से किताब पढ़ कर जाता था और मास्टर जी जो बताते थे, उसे याद करता चला जाता था और फिर किताब पढ़ लेता था। तीसरी, चौथी बार जब उसको नियमित रूप से पढ़ता था तब उसे किताब की लाइन याद हो जाती थी। वही बच्चा टॉप कर गया। ऐसे ही आध्यात्मिक पढ़ाई है। आध्यात्मिक पढ़ाई के बारे में जब चिंता करते रहोगे तब आप इसमें टॉप कर जाओगे, सफल हो जाओगे। सांसों की पूंजी के रहते-रहते अपना धाम मिल जाएगा, अपना असला काम बन जाएगा, यह शरीर पाना आपका सार्थक हो जाएगा।

admin

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *