धर्म कर्म: अपने सतसंग की गंगा में सबको सराबोर करने वाले, भक्तों के कर्मों की धुलाई करने वाले, बाहरी गुणों के साथ-साथ अंदर की शुद्धता लाने वाले, कहने से ज्यादा दिखाने वाले, अनुभव कराने वाले, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने जोधपुर आश्रम (राजस्थान) में दिए संदेश में अंगुलिमाल वाले प्रसंग सुनाते हुए बताया कि बुद्ध सन्त नहीं थे बल्कि अवतार हुए हैं। अवतरित शक्तियां सुधार का ही काम करती हैं। उनके पास जीवन किस तरह जिया जाए इसका ज्ञान होता है। जो वो लोगों को बताते हैं और लोगों के खान-पान, चाल-चलन को सही करते है। शरीर के आराम के लिए ही यह शक्तियां आती है। उनकी सीमा यहीं तक रहती है लेकिन आदमी से बढ़कर के वे काम करते हैं इसीलिए लोग उनको भगवान कहने लगते हैं। उस समय पर पूज्य होते हैं। बाद में उनकी फोटो की, मूर्ति की पूजा होने लगती है, लोग (उनकी याद में) स्थान बना लेते हैं।
सन्तों की बातें गंगा जल की तरह होती है
सन्तों की बात गंगा जल की तरह होती हैं, खराब होने वाली नहीं होती है। गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव) के सतसंग को आपको पढ़ते, सुनते रहना चाहिए। जब सतसंग के वचनों की चोट मन के ऊपर पड़ती है तब यह मन दुनिया की तरफ से हटता है और गुरु के प्रति प्रेम पैदा करता है। देवी-देवता जिनसे कुछ मिल सकता है, उनकी तरफ प्रेम पैदा करता है। उनकी पूजा-उपासना कैसे की जाए, कैसे उनको खुश किया जाए ताकि वो भौतिक शरीर के लिए कुछ दे दें, यह कैसे पता चलता है? सन्तों की बातों को अमल करने से, सुनने से और समझने से। कहा भी गया है- सतसंग जल जब कोई पावे, मैलाई सब कट कट जावे।