धर्म कर्म: सब जीवों के पिता सतपुरुष के साक्षात अवतार, जिनमें पूर्व के सभी सन्त और उनकी दया समाई हुई हैं, इस अनमोल मनुष्य शरीर में छुपे सीक्रेट खजाने को प्राप्त करने की चाबी बताने वाले, अपने शिष्यों की सब तरह से संभाल करने वाले, काल माया से बचाने वाले, पूरे सभी प्रकार से समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने होली कार्यक्रम में उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि सन्तमत का सतसंग मिलने पर ज्ञान होता है नहीं तो मनुष्य अपनी समय परिस्तिथि परिवार वातावरण के अनुसार चले आ रहे देवी-देवताओं का ही नाम लेता हुआ (इस दुनिया से) चला जाता है और आत्मा को परमात्मा से मिलाने का असली काम नहीं हो पाता। सतसंग उसे कहते हैं जहां सतलोक सतपुरुष का कीर्तन होता है। कीर्तन यानी कीर्ति। कीर्ति, किये हुए काम को काल नहीं खा सकता है। उपरी लोकों के वासियों देवी-देवताओं को भी अपने कल्याण के लिए मनुष्य शरीर में आना पड़ता है, तत्व ज्यादा हैं लेकिन उनके शरीर से उपर जाने का रास्ता नहीं है।
प्रभु पर विश्वास रखो, सब अच्छा होगा
मनुष्य तो संग दोष से अपने रास्ते से अलग हो जाता है, अपने उसूल छोड़ देता है लेकिन जानवर अपनी जगह मजबूत होते हैं। मैं कई देशों में गया, शाकाहारी जानवरों के सामने मांस डाल दो, नहीं खायेंगे, सूंघ कर छोड़ देंगे। और आदमी दुसरे स्थान पर जाकर संग दोष में आकर मां-बाप के दिए संस्कार को ख़त्म कर देता है। सोचता है कि बॉस, नेता के साथ बैठ कर मीट खायेंगे, शराब पियेंगे तो प्रमोशन दे देगा, टिकट दे देगा। उस प्रभु पर से विश्वास ख़त्म कर देता है जो सबको देता है। कभी भी अपने उसूल से अलग नहीं होना चाहिए। हमेशा अपने उसूल पर रहना चाहिए।