धर्म कर्म: जिनकी दया से ही साधना में तरक्की मिल सकती है, साधना में सह-उत्पाद के समान मिलने वाली तमाम शक्तियों के अहंकार से साधक को बचाने वाले, हर तरह से जीवों को समझा कर, नरक चौरासी से बचा कर, बड़े लक्ष्य की तरफ अग्रसर करने वाले, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने उज्जैन आश्रम में आयोजित होली कार्यक्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि इसी शरीर में महापुरुष आते, काम करते, चले जाते हैं। उनका इतिहास बन जाता है। उनके जनहित के कार्यों को लोग न भूलें इसलिए ये त्योंहार बनाते हैं। जब तक महापुरुष रहते हैं, लोग जल्दी पहचान नहीं पाते। जाने के बाद अपनी बुद्धि लगा कर उनकी बात को अपने तरीके से पेश करते हैं (जिससे बात बदल जाती है) और लोग भूल भ्रम में पड़ जाते हैं।

अब धार्मिक किताबें बहुत सी हो गयी, पढ़ कर लोग भूल भ्रम शंका उपापोह में पड़ जाते हैं कि क्या करे, क्या न करें और निराश होकर बैठ जाते हैं। (जब उन्ही के स्तर के जानकार महात्मा सन्त आते हैं, समझाते हैं तब असली मतलब लोगों को समझ में आता है, शंका मिटती है)। जब प्रभु से अटूट यानी कभी न ख़त्म होने वाला प्रेम होता तब प्रभु रक्षा करता है। जब दुनिया की इच्छाएं ख़त्म हो जाती हैं, प्रभु को पाने की, जीवात्मा को नरक चौरासी से बचाने की इच्छा रह जाती है, तब व्यक्ति सुखी हो जाता है। जैसे आप बच्चे के मन को तरह-तरह से समझाकर खेलने से पढ़ाई की तरफ मोड़ते हो ऐसे ही सन्त भी गद्य में, पद्य में, स्थानीय भाषा में बोलकर, अन्य कई तरीकों से समझाते हैं की जीव में जाग्रति आ जाए, समझदार हो जाय।

काम क्रोध लोभ मोह अहंकार ज्यादा हो जाए तो कैसे रोकें

काम क्रोध लोभ मोह अहंकार बढ़ना नहीं चाहिए, सीमा में रहना चाहिए। बढ़ने पर आदमी को तकलीफ देने लगता है इसीलिए सतसंग की, सन्तों की जरुरत पड़ी, समझाने के लिए। अति कोई चीज की अच्छी नहीं होती है। संयम-नियम का पालन करोगे, गलत चीजें नहीं खाओगे, गलत संग नहीं करोगे तो काम वासना बहुत ज्यादा बढ़ेगी नहीं। सहनशील व्यक्ति यदि क्रोधी स्वभाव वाले के साथ रहे तो उसे भी क्रोध आने लगता है, बोलेगा तो मीठी बात लेकिन आवाज कड़क हो जाती है। कुदरत ने जीवों को एक दुसरे के आहार के लिए, मनुष्य के फायदे के लिए बनाया। इनका वेग रोकने के लिए शील क्षमा संतोष विरह विवेक बना दिया। जैसे काम की भावना जागने पर शील लाना चाहिए, क्रोध आने पर क्षमा, लोभ आने पर संतोष करना चाहिए, अपने से छोटे को देखना चाहिए। अहंकार आये तो विवेक लाना चाहिए, सोच लेना चाहिए कि परिणाम क्या होता, जेल जाना पड़ेगा, आज नहीं तो कल पकड़े जायेंगे। कुदरत इन्साफ करती है। एक जज ने फांसी की सजा सुनाई तो मुलजिम बोला मैं अपने सीने पर हाथ रख कर कहता हूँ कि मैंने ये क़त्ल नहीं किया। तो कलम हाथ में लिए हुए जज बोला तुमने कोई और क़त्ल किया होगा जिसमें तुम बच गए होगे। अब अपने ह्रदय पर हाथ रख कर, जिस देवी-देवता को मानते हो उसे साक्षी मानकर कहो। तब बोला किया था। यहां से आदमी अगर बच जाता है तो वहां इन्साफ होता है।

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