धर्म कर्म: निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, चाहे कड़वा बोलना पड़े लेकिन सदैव हित की बात कहने वाले, पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बाबा जयगुरुदेव जी के मासिक भंडारे के शुभ अवसर पर कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को प्रात: उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि कलयुग में पूर्व की चीजें लुप्त होती दिखाई पड़ रही हैं। अब लोगों में न आत्मबल है, न आत्म शक्ति है, न तत्वदर्शी हैं न आत्मदर्शी हैं न ब्रह्म्दर्शी हैं न ब्रह्म को और न ही देवी-देवताओं को देख सकते हैं, न शस्त्रों की और न ही अन्य विद्याओं की जानकारी लोगों को हो पा रही है। शरीर भी कमजोर हो गया।

इस समय मनुष्य निर्बल कमजोर अपंग की तरह से हो रहे हैं

आप देखो बॉडी बनाने का, पौष्टिक चीजें खाने का यूट्यूब पर डाल दें लेकिन उसी के बीच में गंदी नंगी तस्वीर डाल दें तो ये कैसे संयमित रह पायेंगे? उससे शरीर कमजोर हो जा रहा है। जवान-जवान लोगों को रोग हो रहे हैं, कमजोरी आ रही है। शरीर की भी स्थिति सही नहीं कि थोड़ा दौड़ सके, थोड़ी दूर भी चले जाए। काम में मन नहीं लगता क्योंकि शरीर कमजोर हो गया है। बुढ़ापे वाली कमजोरी अलग है लेकिन जवानों में शक्ति क्षीण हो रही है, बुद्धि नहीं काम करती है, सोच ही नहीं पाते हैं कि क्या करना, क्या नहीं करना चाहिए। दिल-दिमाग को ताकत देने वाली चीज शरीर में रही नहीं, निकल गयी, निकाल दिए तो इन सब चीजों की वजह से मनुष्य एकदम निर्बल कमजोर अपंग हो गया, लायक नहीं रहा कि वह कुछ कर सके।

कारण क्या है?
मन को मजबूती देने का तो सवाल ही नहीं उठता क्योंकि माहौल बदल गया, खान-पान खराब हो गया। महात्माओं का उपदेश सुनना लोगों ने बंद कर दिया और ऐसे लोगों के पास उठने-बैठने लग गए जिनको अध्यात्म की, परमार्थ की, आचार-विचार की जानकारी नहीं है। तो वे लोग जो सलाह देते हैं, उसी तरह से आदमी का खानपान हो जाता है। जैसे बहुत से लोग यही सलाह दे देते हैं कि अंडा मांस खाओगे तो शरीर तंदुरुस्त होगा, ताकत मिलेगी। वो ताकत क्या करती है? दिन में अंडा खाते हैं, रात को वही ताकत निकल जाती है।

उपाय क्या है
इस समय लोगों को सतसंग की और संयम-नियम पालन करने की बहुत जरूरत है। साथ ही (नाम की कमाई का) वो सरल आसान तरीका अपनाने की जरूरत है जिससे रिद्धि-सिद्धि भी मिल जाए, शरीर में ताकत भी आ जाए, अपने आत्मा का दर्शन आत्मसाक्षात्कार कर लें, ये ज्यादा जरूरी है। एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाए।

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