धर्म-कर्म : इस समय के त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने एक प्रसंग सुनाते हुए बताया कि सत्संग में सुना था कि आओ अपने मन से और जाओ पूछ करके। बगैर आदेश के मत जाओ। क्योंकि तुमको यह मालूम नहीं रहता है कि आगे का समय कैसा है। जो महात्मा त्रिकालदर्शी होते हैं उनको भूत वर्तमान भविष्य, सब की जानकारी होती है। तो उनसे तुम को पूछ करके चलना-फिरना, करना चाहिए। यह सब सत्संग सुना था, तो उसने कहा था बगैर आदेश के नहीं जाएंगे तो कहा महाराज, अब आदेश दे दो, अब हम चले जाएं। बोले अरे! जिस काम के लिए तू आया, वह तो तेरा काम हुआ नहीं। तो अभी तू फिर क्यों जा रहा है? फिर सोचा बात तो सही है। खाली हाथ ऐसे क्या जाना, रुक गया।
हर सतसंगी कार्यक्रमों में दो-चार नए लोगों को नाम दान दिलाओ:-
बाबा उमाकान्त जी ने उज्जैन आश्रम में बताया कि आप संकल्प अगर बना करके जाओगे तो जो संकल्प नही बनाते हो तो नहीं पूरा होता है। संकल्प एकदम से भी नहीं पूरा होता है, यह भी जान लो। क्योंकि फिर अहंकार आ जाएगा। तब कहोगे, कुछ नहीं, हमारी कम मेहनत में ऐसा हो गया। इसलिए गुरु अपने हाथ में भी कुछ रखते हैं कि अहंकार न आ जाए। लेकिन जब आगे नहीं बढ़ोगे तो मंजिल तक कैसे पहुंचोगे? 10-50 को नहीं ला सकते हो तो दो-चार लोगों को बच्चे और बच्चीयों नये लोगों को समझा करके, जहां (भी सतसंग कार्यक्रम में) जाओ, वहीं उन्हें लेते जाओ, उनका भी भला हो जाएगा। सबसे बड़ा परमार्थी काम यही है कि इसी शरीर और आत्मा को सुख पहुंचाया जाए। पशु नहीं, केवल मनुष्य ही परमार्थी काम को कर सकता है।