हमारे हिन्दू धर्म में महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य को लेकर कई सारे व्रत रखती है। ऐसे में कई सारे व्रत है , जिनपर महिलाएं सोलह शृंगार कर के पूरे विधि – विधान के साथ व्रत संपन्न करती है। ऐसे में वट सावित्री व्रत को लेकर सभी महिलाओं में काफी श्रद्धा होती है। यह व्रत के जेष्ठ माह में 15 दिन के अंतराल पर दो बार रखा जाता है। जिसमें पहला व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या और दूसरा पूर्णिमा तिथि को रखा जाता है। वैसे तो दोंनो ही व्रत में पूजा-पाठ करने का विधान, कथा, नियम और महत्व एक जैसे ही होते हैं। लेकिन फिर भी हम जानेंगे वट सावित्री पूर्णिमा की तिथि, पूजा मुहूर्त और महत्व ……..

वट सावित्री व्रत के पूजन का शुभ मुहूर्त

ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि 3 जून, दिन शनिवार को सुबह 11 बजकर 16 मिनट से शुरू हो जाएगी. जिसका समापन 4 जून, दिन रविवार को सुबह 9 बजकर 11 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, वट पूर्णिमा का व्रत 4 जून को रखा जाना चाहिए, लेकिन तिथि अक्षय के कारण वट पूर्णिमा का व्रत 3 जून को रखा जाएगा।

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वट सावित्री व्रत महत्व

वैसे तो हर पूजा – व्रत का अपना – अपना महत्व होता है। ऐसे में हम जानेगे कि, वट सावित्री व्रत का क्या महत्व है और इसके पीछे की पौराणिक कथा क्या है।
पौराणिक कथा के अनुसार, ”वट वृक्ष के नीचे ही सावित्री ने सास-ससुर को दिव्य ज्योति, छिना हुआ राज्य और मृत पति के शरीर में प्राण वापस आए थे। यही वजह है कि महिलाएं इसी दिन बरगद के पेड़ के नीचे पूजा-पाठ कर अपने पति की लंबी आयु की मनोकामना करती हैं। वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से जाना जाता है।

 

 

 

 

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