धर्म-कर्म : मुक्ति मोक्ष प्राप्त करने का एकमात्र तरीका नामदान देने के धरती पर एकमात्र अधिकारी, साधना में प्राप्त होने वाली छोटी-मोटी शक्तियों, सिद्धियों में न फंसने और उससे भी बड़ी, बहुत बड़ी चीज प्राप्त करने का लक्ष्य बनवाने वाले, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी ने बताया कि कहते हो पेड़-पौधे को पूजोगे तो देवता खुश हो जाएंगे। गंगा, यमुना नदियां मुक्ति-मोक्ष दे देंगी। देखो, मगरमच्छ कछुआ और मछली वहीं नदियों में रहते हैं जिनमें आप मुक्ति-मोक्ष खोजने के लिए जाते हो लेकिन मगरमच्छ कछुआ मछली के पार होने की कोई खबर लिखा-पढ़ी वर्णन में कही नहीं मिलीती है। लेकिन देखा-देखी। बस इधर-उधर बहुत से सतसंगी भटक जाते हैं, विश्वास नहीं होता है। विश्वास क्यों नहीं होता है? कहा है- देखे बिन न होए परतीती, बिन परतीत होये न प्रीति। बगैर देखे विश्वास नहीं होता है। जब देवी-देवता अंदर में दिखाई पड़ जाएँ तो कहोगे वहां कुछ नहीं है, सब (लोग) अँधेरे में हैं (पूरी जानकारी नहीं है)।

बगैर मेहनत के खाने पर पुण्य कर्म सिद्धियां कम होती है:- 

महाराज जी ने बताया कि कर्म करके खाने में फायदा रहता है। अगर अंदर में रिद्धि-सिद्धि प्रकट हो जाए, ये सिद्धियां प्राप्त हो जाए तो जो इच्छा किन्हीं मनमाही। जिस चीज की इच्छा होती है, वह चीज हाजिर हो जाती है। लेकिन उसमें से कटता है। जो शक्ति आती है, सिद्धि जो मिलती है, उसमें से कटता है। मेहनत, चाहे वाणी से, दृष्टि से, देख करके, दया दे करके, बोल करके, समझा करके या हाथ से कोई काम करके या पैर से चलकर के मेहनत करना हो, इसको न किया जाए और बैठ करके खाया जाए तो वह जो पुण्य कर्म, अच्छे कर्म, सिद्धि होती है, वो कम होती (जाती) है।

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