धर्म-कर्म : बने तो गुरु से बने नहीं तो बिगड़े भरपूर, स्वामी बने जो और से, उस बनने पर धूल – गोस्वामी जी के इस वचन को चरितार्थ और साकार करने वाले, व्यक्तिगत संबंधों की परवाह न करते हुए गुरु के आदेश का अक्षरश: पालन कर गुरु को खुश कर ले जाने वाले, निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी जानशीन, जिनको स्वामी जी महाराज अपनी असली गद्दी पर खुद बैठा कर गए हैं, जो सब कुछ हैं, जो सब कुछ चला रहे हैं, जो समस्त पॉवर लेकर इस समय धरती पर मनुष्य शरीर में धूम, डोल रहे हैं, ऐसे विलक्षण सन्त उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि आत्मा का कल्याण तो, जो पांच नाम गुरु महाराज ने बताया, उसी से होगा।
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आत्म कल्याण की तो इच्छा ही नहीं जग रही है प्रेमियों की, सतसंगियों की। उसके बारे में तो कोई सोच ही नहीं रहा है। सब दुनिया की चीजें, दुनिया की बातें। जब सतसंग सुनाया जाता है तब कहते भी हैं दया करो, दया करो, ध्यान भजन नहीं बन रहा है, मन नहीं लग रहा है। तो देखो मन कहां लग रहा है। इसको तो आप देख लो। मन तो एक ही है तो कहां-कहां लगेगा? जहां लगाओगे वहीं तो लगेगा। तो मन को लगा कर के (साधना) करो। तो चाहे यह (दुनिया का काम) करोगे, चाहे वह (अपनी जीवात्मा का असला काम) करोगे, दोनों में कामयाबी मिलेगी।
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