धर्म-कर्म : निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, तीसरी आँख खोलने वाले, यमराज के फंदे से बचाने वाले, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया की, जीवों की रक्षा कैसे होती है ? एक तो अकाल मृत्यु से होती है और एक रक्षा जो शरीर छूटने के बाद नरकों में न जाएं, चौरासी की योनियों में न भटकें, कीड़ा-मकोड़ा, सांप, गोजर, बिच्छू के शरीर में न बंद किया जाए इससे होती है।
बाबा जी ने कहा की, जो नामदानी नहीं है, जो बारूद के ढेर की तरफ बढ़ रहे हैं, जो कभी भी अकाल मृत्यु, प्रेत योनि में जा सकते हैं। उनको बचाओ। जिनका खान-पान, विचार भावनाएं गलत हो गई। जो मांस-मछली, अंडा, शराब जैसे तेज नशे का सेवन करने लगे, उनकी बुद्धि सही नहीं है, वह गलत से गलत काम कर बैठते हैं। कब क्या कर डालें? कहां चले जाएं? कौन सा रोग हो जाए, नहीं पता। ऐसे में उन्हें बचाने की जरूरत है, जिससे शाकाहारी नशा मुक्त हो जाएं, दिल-दिमाग उनका काम करने लग जाए, सतसंगों में आने लग जांए, अच्छाई-बुराई का ज्ञान होने लग जाए और जीवात्मा नर्कों में न चली जाए, उनके पुराने बुरे कर्म जल जाएँ। जो नाम दान ले चुके हैं उनको भजन में लगाओ। सुमिरन, ध्यान, भजन उनको समझाओ। यह आप करने लग जाओगे तो धीरे-धीरे गुरु के ऋण से आपका उद्धार हो जाएगा। नहीं तो गुरु के ऋण से उद्धार नहीं हो सकता।