धर्म कर्म: कृपा सिन्धु नर रूप हरी, यानी नर के रूप में आये हुए हरि, स्वयं सतपुरुष के तदरूप, जिन्हें आज भी बहुत से लोग अभी तक पहचान नहीं पाए हैं और गफलत में मनुष्य समझ रहे हैं, परालौकिक पांच नामों का नामदान देने के लिए एकमात्र अधिकृत, इस वक़्त के मसीहा, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने जैसलमेर में बताया कि गुरु को मानुष जानते ते नर कहिए अंध, महा दुखी संसार में आगे यम का फंद।

उन्होंने ने बताया गुरु को मनुष्य मत समझो। लोगों को समझाओ, प्रकृति व भगवान के खिलाफ काम न करे, नामदान रूपी कील पकड़ा दो। दुश्मन के लिए बार्डर का पहला जिला जैसलमेर, कोई अनहोनी शुरू हो गई तो सोचो क्या होगा। इस समय पर अपने कर्मो के आधार पर इंसान बारूद के ढेर पर खड़ा, कब कहा क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। बचो और बचाओ।

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