प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि, पुलिस की चार्जशीट पर अदालत के संज्ञान लेने के बाद भी एसपी केस की विवेचना दूसरे थाने को स्थानांतरित कर सकते हैं। इसके लिए न्यायिक मजिस्ट्रेट की अनुमति लेना आवश्यक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि, मजिस्ट्रेट का पुलिस को फिर से विवेचना करने का अधिकार इससे प्रभावित नहीं होगा क्योंकि मजिस्ट्रेट के लिए पुनर्विवेचना का आदेश देने के लिए सभी अभियुक्तों को सुनना जरूरी है।

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यह आदेश न्यायमूर्ति उमेश चंद्र शर्मा ने राम कोमल व दो अन्य की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने कहा कि, सीआरपीसी की धारा 173 (8) के तहत केस की विवेचना अन्य पुलिस को स्थानांतरित करने के लिए मजिस्ट्रेट की औपचारिक अनुमति लेना आवश्यक नहीं है। पुलिस अधीक्षक केस की विवेचना स्थानांतरित कर सकते हैं। कोर्ट ने मुकदमे में दाखिल चार्जशीट पर मजिस्ट्रेट के संज्ञान लेने के बाद पुलिस अधीक्षक द्वारा दूसरे थाने को विवेचना करने का आदेश देने के विरुद्ध दाखिल याचिका को बलहीन मानते हुए खारिज कर दिया है। मामले के तथ्यों के अनुसार आठ जनवरी 2005 को आठ लोग शिकायतकर्ता उमाशंकर कुशवाहा के घर पर आए और उन्होंने सेहन की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश की। शिकायतकर्ता के परिवार से गाली-गलौज व मारपीट की और झोपड़ी में आग लगा दी थी। पीड़ित की शिकायत पर पुलिस ने विवेचना कर केवल पांच लोगों दरोगा, राकेश उर्फ लाल बाबू, चंद्रिका, मनोज और प्रमोद के खिलाफ धारा 147, 323, 504, 506 में चार्जशीट दाखिल की और राम कोमल, राजेश व भुवर को झूठा फंसाना बताकर फाइनल रिपोर्ट पेश की। शिकायतकर्ता ने एसपी देवरिया को विवेचना कोतवाली पुलिस सलेमपुर को स्थानांतरित करने की अर्जी दी। इस मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह अहम फैसला सुनाया है।

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