धर्म-कर्म : विश्वविख्यात परम् सन्त बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि, लोगों की सोच यह है कि पित्र पक्ष में पित्र आते हैं, उनको खुश किया जाए। हिंदू धर्म के अनुसार किसी की मृत्यु हो जाती है तो नवा दसवां करते हैं, 12 दिन पर लोगों को खिलाते, पिंडदान वगैरह करते हैं। कुछ विद्वानों ने बताया कि उनको जो आहुति दोगे, हवन करोगे वह पितरों को, देवताओं को मिलेगा। लेकिन जो चीज (खाना, पानी) आप दे रहे हो वो उनको मिलता है कि नहीं, इसकी जानकारी बहुत से लोगों को नहीं है। क्योंकि इस मनुष्य शरीर से हम पितरों को, देवताओं को देख नहीं सकते हैं।

पितृ किसको कहते हैं:-

बाबा जी ने बताया की, जिनकी अकाल मृत्यु हुई और जो प्रेत योनि में चले गए उन्हें पितृ कहा जाता है। विद्वानों ने कहा है की, अगर मृत्यु के बाद यह प्रेत योनि में चले गए तो तुमको परेशान करेंगे। क्योंकि इनके मानव शरीर को तुमने जला दिया, नष्ट कर दिया। जिस व्यक्ति ने इनके शरीर को आग दी होगी ये उसे सबसे ज्यादा परेशान करेंगी, उसी पर अपना गुस्सा उतरेंगी। इसलिए उनकी आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करवाया जाता हैं।

पितरों को खुश करने का तरीका:-

बाबा जी ने बताया की, प्रेतों को 15 दिन खिला देने से वह खुश नहीं होते हैं। उनकी भूख बराबर बनी रहती है। जैसे 4-6 दिन आप खाना खा लो और फिर खाना न मिले तो आप परेशान हो जाओगे। ठीक उसी तरह जब आप लगातार इनको भोजन नहीं देते हो तो ये आपको परेशान करने लगते हैं। क्योंकि इनकी भूख बहुत होती है। पेट बहुत बड़ा होता है तो हमेशा भूखे ही रहते हैं। इसलिए इन्हे हर रोज खिलाते रहो, पानी दो। महाराज जी ने कहा कि, क्वार (अश्विन) के महीने में भी पितरों का पिंडदान और उन्हें भोजन करवाया जाता है। कोई कन्याओं को खिलाता है तो कोई ब्राह्मणों को। कहीं खीर-पूडी तो कहीं पुआ-पकोड़ा बनता है। प्रेतों और देवताओं का भोजन सुगंधी होता है। इसलिए खुशबू वाला खाना बनाकर इन्हे अर्पित किया जाता है।

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