धर्म- कर्म: जयगुरुदेव संत उमाकांत जी महाराज ने बताया कि 30 जनवरी को वह गुजरात में नामदान देंगें। उन्होंने कहा कि जो साधना अब बताऊंगा उसमें कोई नियम ऐसा नहीं है कि नहाना, धोना, कपड़े बदलना, फूल पत्ती लाना, दिया-चिराग जलाना, प्रसाद भोग लगाना ही रहेगा। यह सब कुछ नहीं। सबसे सरल साधना, चेतन जीवात्मा से उस चेतन (प्रभु) को याद करने की यह पूजा है। आप आराम से सीखो। कोई भी कर सकता है। चाहे कोई स्त्री हो, पुरुष हो, चाहे सात-आठ साल का बच्चा हो, सब कर सकते हैं।

महाराज उमाकांत जी ने कहा कि हमारे यहां तो कोई भेदभाव नहीं है। हम तो इंसान और इंसानियत, मानव, मानवता, मानव धर्म की बात करते हैं। हमारे गुरु महाराज के पास भी कोई भेदभाव नहीं था। उनके पास हर तरह के लोग जाते थे, गरीब भी, अमीर भी, बड़े-बड़े नेता, मंत्री, मुख्यमंत्री आदि सब जाते थे। हमारे पास भी आते है। हमारे पास भी देश के गृहमंत्री, प्रदेश के मुख्यमंत्री, अन्य प्रदेशों के मुख्यमंत्री और आपके बड़े-बड़े हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के जज हमारे पास भी आते हैं।

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कहते हैं, हमारा काम, जो हम कर रहे हैं, जिनको साधु-महात्मा आप जो भी कह लो वह गरीबों के, छोटे लोगों के तो होते ही हैं, क्योंकि जिसके कोई नहीं होता है उसका कहते हैं मालिक होता है। मालिक की पहचान जिनको होती है, सबके ऊपर उनकी नजर होती है, वो सबकी भलाई चाहते हैं। हर तरह के लोग हमारे पास आते हैं। हम यह नहीं कहते कि आप जहां खाते हो वहाँ न खाओ। जहाँ समाज में, जिस बिरादरी में आप खाते हो, वहीं खाओ, वहां शाकाहारी भोजन करो और लड़का-लड़की का ब्याह जहां करते हो वहीं करो, हमारी तरफ से ऐसी कोई बात नहीं है।

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