धर्म कर्म: निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, प्रेम श्रद्धा भाव तड़प से याद करो तो सपने में भी और अंदर में भी दर्शन देने वाले, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त महाराज जी ने उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि गुरु महाराज ने बहुत मेहनत किया। उतना मेहनत अगर हम और आप कर दें तो उनका मिशन, यह काम बहुत जल्द पूरा हो जाए। वो जीवों के लिए बराबर दुखी रहते थे। जीवों को जगाने, समझाने के लिए बराबर कहते, करते थे। उनकी सोच जीवों के लिए ही बराबर रहती थी। (चूँकि) गुरु महाराज मनुष्य शरीर में थे, शरीर को चलाने के लिए भोजन तो करते थे, कपड़े से शरीर को ढकते थे, लोगों को बुलाने, समझाने के लिए, सतसंग सुनाने के लिए जगह का प्रबंध करते, सब व्यवस्था करते, साधन सुविधा जुटाते थे लेकिन उनका निशाना केवल एक था- तुमको घर पहुंचावना, एक हमारो काम। गुरु महाराज शरीर छोड़कर चले गए। अब उनके वचनों को इन बाहरी कानों से नहीं सुन सकते हो। अंदर में जीवात्मा का कान खुल जाए तो वह तो अब भी यही सुनाते, समझाते रहते हैं। अभी उनका सतसंग ऊपरी लोकों में चलता रहता है। वहां जब पहुंच जाओगे, उनके वचनों को सुनोगे तब आप एकदम पक्के हो जाओगे। फिर कच्चे नहीं रह जाओगे, आपके अंदर गुरु भक्ति आ जाएगी, आप गुरुमुख हो जाओगे, मन मुख नहीं रह जाओगे। लेकिन जब आप उनका दर्शन नहीं कर पाते हो, गुरु महाराज की वाणी को नहीं सुन पाते हो तो भूल और भ्रम के देश में भ्रम में पड़ जाते हो। आप उनका बस केवल एक ही कहना मान लो कि सुमिरन, ध्यान, भजन में बच्चा समय दो। एक घंटा सुबह-शाम बैठने की आदत डालो, धीरे-धीरे ये मन रुक जायेगा।

गुरु भाई मरने के बाद भी एक-दूसरे को नहीं भूलते हैं

महाराज जी ने जयपुर (राजस्थान) में बताया कि गुरु भाई मरने के बाद भी (एक-दूसरे को) नहीं भूलते हैं। अपना भाई, जो खून का रिश्ता होता है, भूल जाते हैं। गुरु भाई यहां भी है और वहां भी मिलते हैं। लेकिन गुरु भाई भी एक दूसरे से जब नहीं मिलते हैं तो प्रेम नहीं जग पाता है। इसीलिए कहते हैं प्रेमी से प्रेमी मिले, गुरु भक्ति दृढ़ होय, प्रेमी खोजन मैं चला, प्रेमी मिला न कोय। प्रेमी को प्रेमी से, साधक को साधक से मिलते रहना चाहिए। सतसंग की बातें करते, सीख लेते रहना चाहिए। किस तरह से हमारे भजन, साधन में तरक्की हो, किस तरह से हम झूठी दुनिया से अलग होकर सच्चाई, सत्य की तरफ आगे बढ़ें, किस तरह से धोखे के संसार से निकल कर के प्रभु की प्राप्ति हम करें, इसकी चर्चा करते रहना चाहिए।

गुरु की फोटो को भी याद कर सकते हो

महाराज जी ने छत्तीसगढ़ में बताया कि गुरु से प्रार्थना किया जाए, मेरे प्यारे गुरु दातार मंगता द्वारे खड़ा, मांगो कि दया कर दो तब बीच में कोई नहीं होना चाहिए। कोई का मतलब पुत्र, परिवार, धन-दौलत, दुनिया की यादें, दुनिया भी नहीं होनी चाहिए। उससे याद बढ़ती है। कहा गया है- गुरु का ध्यान कर प्यारे, बिना इसके नहीं छुटना। गुरु का ध्यान सन्तमत में प्रमुख माना गया है। गुरु का ध्यान पहले होना चाहिए तो गुरु के फोटो को याद करो। और अंदर में अगर दर्शन होता है, (तीसरा नेत्र) खुल गया है तो एकदम से प्रार्थना के द्वारा लीन हो जाओ, अंदर में दर्शन हो जाएगा। जब कर्मों की सफाई हो जाएगी तब तो मन स्थिर हो ही जाता है। ऐसा भी होता है कि दर्शन होता भी है और बीच में कर्म आ गए शरीर से, नहीं जान पाए, सतसंग नहीं सुने, सतसंग के वचनों को अमल नहीं किया तो कर्म आ जाते हैं तो दर्शन होना फिर बंद हो जाता है। बीच में आए, चले गए, हुआ, नहीं हुआ तो उस समय पर अगर भूल जाए तो फोटो का ही ध्यान करना चाहिए।

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