धर्म कर्म: निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, नामदान देने के एकमात्र अधिकारी, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, दुखों को हरने वाले, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त महाराज जी ने सीकर (राजस्थान) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि गुरु जब नामदान देते हैं, उस वक्त पर सुरत की डोर को काल के हाथ से अपने हाथ में ले लेते हैं। और अपने स्थान- गुरु पद पर ले जाकर के बांध देते हैं। ऐसे तो सतलोक में कोई पहुंच जाए तो नीचे उतरना ही नहीं चाहता है। सतलोक जाने वाले बहुत से लोग चले जाते हैं लेकिन जिनको सतपुरूष यह काम सौपते हैं, जीवों के कल्याण उद्धार का, वह सतलोक पहुंचने के बाद नीचे आते हैं। अपने जीवों के लिए आते हैं। जैसे बहुत से मास्टर साहब दूसरी जगह तबादले के बाद भी अपने पढाये बच्चों से प्रेम वश वहां भी अपने घर पर बुलाकर के पढ़ाते हैं की यह काबिल हो जाए, निकल जाए, पास हो जाए, ऐसे ही प्रेम हो जाता है। और जो उनको याद करता है, बराबर उनकी मदद करते हैं। जिनको अपना काम सौप कर जाते हैं, दुनियादारी का छोटा-मोटा काम, यह तो सब उनके द्वारा करवा देते हैं, उनसे मदद करवा करके दया करके उनके द्वारा करवा देते हैं। लेकिन जीवात्मा के कल्याण का काम खुद अपने हाथ में रखते हैं। इसलिए समय निकल जाएगा। कहा गया है- धोबिया वह मर जाएगा, चादर लीजिए धोये, चादर लीजिए धोये, भयी वो बहुत पुरानी, चल सतगुरु के घाट, बहे जहाँ निर्मल पानी। तो सतगुरु द्वारा सतसंग रूपी निर्मल पानी बह रहा है, अपने गंदे कर्मों को इसमें धो लो। आपको बराबर चेताया बताया जा रहा है कि अच्छे कर्म करो। आपके बुरे कर्म इकट्ठा न होने पाए, आप दुनिया में ही रहो लेकिन इंद्रियों का भोग करते हुए फंसो नहीं।
साहब सबका बाप है बेटा काहू का नाही
महाराज जी ने जोधपुर (राजस्थान) में बताया कि प्रभु को प्राप्त कर लिया जाए, प्रभु की मर्जी के अनुसार काम किया जाए तो जो उस वक्त के आने वाले (महापुरुष) हैं, काम करने वाले हैं, जिनको प्रभु ताकत देता है, उनके अनुसार काम कर लिया जाए तो सब काम बन जाए। तो हमारे गुरु महाराज जैसे सन्त हुआ करते हैं। साहब कभी नहीं आते हैं, वह तो किसी का बेटा बनता ही नहीं है और जो मनुष्य शरीर में आएगा, किसी न किसी का बेटा कहलाएगा। बाप उसका कोई न कोई होगा ही होगा। कहा गया है- साहब सबका बाप है, बेटा काहू का नाही, बेटा होकर जो जन्मे, सो तो साहब नाही। तो समझो कि साहब खुद नहीं आता है लेकिन साहब की ताकत पावर उसमें आती है। जैसे बेटा को पावर दे दिया कि जमीन खरीद-बेच लो, ऐसे ही पावर दे देते हैं। जो जीव उनके अनुसार लग जाते हैं, उनका काम कर देते हैं, तो काम बन जाता है।
जो दूसरों के लिए करता है, वही परोपकारी होता है
महाराज जी ने उज्जैन आश्रम में बताया कि रहना तो इसी माहौल में है। काम तो इसी माहौल में करना है। तो अब इस माहौल में काम नहीं करोगे, यही सोच बैठोगे कि हमको फोन किसी का उठाना ही नहीं है, हमको किसी से बात ही नहीं करना है तो आपके जीवन का 24 घंटे में से वह जो 2 घंटे का समय है, उसका उपयोग कैसे हो पाएगा? आपके तन से सेवा कैसे हो पाएगी? आप मान लो ध्यान भजन भी करते हो, आप नौकरी काम भी करते हो लेकिन तन की सेवा आपकी दूसरों के लिए नहीं हो पाएगी। आप ध्यान भजन करोगे तो अपनी आत्मा के लिए करोगे, आपकी तन की सेवा अपने लिए काम आएगी। लेकिन यह जो दूसरों को सुधारने, समझने, बताने का है, उसमें आपकी तन की सेवा कहां लग पाएगी? परोपकार कहां हो पाएगा? जो दूसरे की मदद करता है, दूसरे के लिए करता है, वही परोपकारी होता है। और परोपकार, सेवा का फल मिलता है। अन्य फलों से ज्यादा फल इसका मिलता है। इसलिए यह भी जरूरी होता है। इसलिए जो बातें बताई जाती है, उसको बराबर नोट करते रहा करो और बराबर उसको पढ़ते रहो। और जैसे बच्चे पाठ पढते है, रोज-रोज पढ़ते हैं ताकि परीक्षा के समय में भूल न जाए, जब ऐसे बराबर बातों को याद करते रहो, गुणावन करते रहोगे तो बातें रट जाएगी। दूसरों को बताने का, उपदेश करने का जब समय आएगा, गुरु का ध्यान करके जब समझाने बताने लगोगे तो सतसंग की सुनी हुई बातें याद आ जाएँगी। बहुत से लोग आमने-सामने बैठ कर बात करते हैं, तब (सुनने वाले) सवाल भी करते हैं। वह लोग ज्यादा कामयाब होते हैं जो आमने-सामने बैठकर के बात करता है। लेकिन उसका प्रभाव थोड़ी देर के लिए होता है जैसे कोई वक्ता थोड़ी देर के लिए आया, बहुत बढ़िया सुनाया, किस्सा, कहानी, रामायण, गीता सुना करके, हिंदी-अंग्रेजी बोल करके, बात करके चला गया। लेकिन उसकी बातें उतनी याद नहीं रहती है, लोग भूल जाते हैं। दूसरा सुनने वाले को उसके सवाल का जवाब नहीं मिल पाता है, सवाल उसका सवाल ही रह जाता है। और जब आमने-सामने बैठकर के किसी को समझाते बताते हैं तो वह सवाल करता है, और जब उनका जवाब दे ले जाता है तो उससे वह संतुष्ट हो जाता है। और फिर उसकी बात को मान लेता है तो वह भी जुड़ जाता है और करने लगता है। गलत काम करता है तो संतुष्ट होकर वह छोड़ देता है, मांस मछली अंडा शराब, चोरी व्यभिचार ठगी को छोड़ देता है।