धर्म कर्म: जिनके माध्यम से प्रभु इस समय अपनी दया लुटा रहा है, ऐसे इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने उज्जैन में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि भक्तों को हमेशा दया मांगते, दया के घाट पर बैठते, दयालु को हमेशा निहारते, उनको देखते रहना चाहिए। कहा गया “पड़ा रहे दरबार में, धक्का धनी का खाय। कभी तो गरीब नवाजही, जो दर छाड़ न जाय।।” दर यानी स्थान, जगह। आदमी जगह पर अगर पड़ा रहे तो कभी न कभी उस (प्रभु) को दया आ ही जाती है। देखो भिखारी दरवाजे पर आवाज लगाता है लेकिन न देने वाले जल्दी घर से बाहर ही नहीं निकलते हैं। लेकिन जब बैठ जाता है, रट लगाता रहता है “दे दे माई, कुछ दे दे, एक टुकड़ा दे दे” तो माई दे ही देती है।

मतलब ये है कि जब घाट पर, दरवाजे पर बैठते रहेंगे तब उस मालिक की दया हो जाएगी। सीधे दया तो दे नहीं सकता, किसी न किसी को इस दुनिया संसार में भेजता है। वो कभी नहीं आया। जो कुल मालिक, असला मालिक हैं, जो दुनिया बनाने वाले का भी मालिक है, अंड पिंड ब्रह्मांड सब का मालिक है, वो कभी यहां नहीं आता है। इससे नीचे के लोक के लोग भी नहीं आते हैं, यहां मनुष्य शरीर में जन्म नहीं लेते हैं क्योंकि ये दुखों का संसार है, ये मृत्यु लोक है। यहां जन्मना और मरना पड़ता है तो वो खुद तो नहीं आते हैं लेकिन किसी न किसी अपने अंश को, अपनी शक्ति को इस धरती पर भेजा करते हैं तो उनको मान्यता मिल जाती है। जिनको मान्यता मिल जाती है, उन्ही के पास (जीव) आता-जाता रहे, उन्ही के चरणों में लगा रहे तो भी उस प्रभु की दया उनके माध्यम से हो जाती है। इसीलिए समाज में देखो अलग-अलग स्थान है। विद्वानों, जज, मजिस्ट्रेट, व्यापारियों, किसानों का, पंच, प्रधान, सरपंच, घर के मुखिया, मां-बाप आदि सबका स्थान इस समाज में है। ऐसे ही अलग-अलग स्थान, अलग-अलग लोगों का है। तो इस धरती पर इस समाज में हमेशा सन्त के रूप में रहा करते हैं। वो प्रभु अपनी ताकत को सन्तों में दिया करता है, सन्तों के माध्यम से मिला करता है इसीलिए तो कहा गया है “सत पुरुष की आरसी, सन्तन की ही देह। लखना चाहो अलख को, तो इन्ही में लख लेय।।” जो प्रभु इन बाहरी आंखों से नहीं देखा जा सकता है, उसको अगर देखना चाहो तो सन्तों में देखो, वो रास्ता बता देंगे और तुमको इसी मनुष्य शरीर में ही उस प्रभु का दर्शन होने लग जाएगा तो कहने का मतलब ये है कि बराबर दया मांगते रहना चाहिए।

जयगुरुदेव नाम का, गुरु का ऐसा रंग चढ़ाओ कि लोग कहे “सूर श्याम काली कमली पर चढ़े न दूजो रंग”

वक्त के जगाया नाम, जागृत नाम को भी बोलते रहने पर कर्म कटते है, वो भी हल्के फुल्के कर्मो की सफाई करता है, इसलिए बराबर बोलते रहना चाहिए। इसको भी जो नहीं बोलने देता है, जो इसको नहीं बोल पाते है, जिनका मन नहीं कहता है बोलने का, आप को समझ लेना चाहिए की आपका मन इस शरीर से सही काम नहीं करवा रहा है, मन पापी हो गया। ये पुण्य की तरफ नहीं बढ़ने देता है। इसलिए मन को मारने की जरूरत है। मन नहीं कहता है कि जयगुरुदेव नाम की ध्वनि बोलो, जयगुरुदेव नाम बोलो तो जरूर बोलो तभी वो दबेगा। लड़का बार-बार कोई चीज मांगता, कहता रहता है। जब तक उसको डांटोगे नहीं, और देते रहोगे तो वो और ज्यादा मांगता रहेगा, खा करके पेट खराब कर लेगा, पैसा देते रहोगे, बिगड़ जायेगा, गलत आदत बन जायेगी इसलिए डांटना भी जरूरी होता है। ऐसे मन को दबाना भी जरूरी होता है। मन न कहे जयगुरुदेव नाम बोलने के लिए तो मन से कहो, तू कहे चाहे न कहे, मुझे तो जयगुरुदेव नाम बोलते ही रहना है। और इस तरह से बोलो की बोलने की आदत ही बन जाए, हर जगह बोलने की आदत बन जाए। जयगुरुदेव नाम से ही मशहूर हो जाओ आप खुद, लोग आपको जयगुरुदेव ही कहने लग जाए, ऐसा ही रंग चढ़ाओ। जयगुरुदेव नाम का, गुरु का ऐसा रंग चढ़ाओ की लोग कहे “सूर श्याम काली कमली पर चढ़े न दूजो रंग” कहते है ये पक्का है पक्का, ये जो डिगेगा नहीं, कितना कुछ कहोगे, ये जो उसूल का पक्का है पक्का ही रहेगा, तो सब झुक जाते है। अच्छाई की तरफ सब झुक जाते है, सब सरेंडर कर देते है। नहीं तो ये काल के जीव है, ये भक्ति को अपनी तरफ मोड़ते है, हमेशा यही कारण रहा है ” जगत भगत सो बैर है, चारो युग परमान। पलटू नाहक भूकता साध देखकर श्वान”।

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