धर्म- कर्म : निजधामवासी विश्वविख्यात बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी इस समय के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु दुखहर्ता उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने मुक्ति दिवस, जो आगे चलकर बड़े त्योंहार के रूप में मनाया जायेगा, पर उज्जैन आश्रम में जयगुरुदेव झंडारोहण किया और अपने सन्देश में बताया कि, यह परिवर्तनशील संसार है। पाप और पुण्य दोनों के बीज ख़त्म नहीं होते हैं। जब पाप, राक्षसी प्रवृत्ति बढ़ती है तब सन्त खुल कर सामने आते हैं। कुछ समय पहले अंग्रेज व्यापार करने आये। जब देखा कि, यहाँ के लोग सीधे-साधे, धार्मिक हैं, प्रकृति वातावरण अच्छी है, तो सोचा राज्य करना चाहिए। जब राजा बन गए तब इच्छा बढ़ी की अब हम भारत की जनता को पूरा कंट्रोल में कर लें, यहाँ की संस्कृति को ही मिटा देना चाहते थे। अपना धर्म थोपने के चक्कर में आ गए। साम-दाम-दंड-भेद लगाने लगे तब जनता जग गयी, काफी कुर्बानी भी देनी पड़ी। फिर अंग्रेजों की जगह कुछ भारतीय आ गए जो उसी पैटर्न पर चले। एक ही दल, खानदान के लोग काफी समय तक सता में बने रहे।
बेवा प्रधानमंत्री के आपातकाल में अत्याचार:-
बेवा (विधवा) प्रधानमंत्री अपने रौब में आ गयी, सोची विश्वप्रसिद्ध नेता बने, कोड़े से मार कर सबको कण्ट्रोल में कर लें, तो अत्याचार करना शुरू कर दिया। उसके चाटुकारों ने भी जनता को भेड़-बकरी समझ कर वैसा व्यवहार करने लगे। तब गुरु महाराज को आगे आना पड़ा। पहले तो समझाया लेकिन जब नहीं मानी तब बेड़र होकर कुछ भविष्य की बातें मंच से खुलेआम बोल दिया। नसबंदी आदि के खिलाफ सच बात बोले। सन्त त्रिकालदर्शी होते हैं। 73-74 में उन्होंने कहा था कि, बेवा प्रधानमंत्री के हाथ में विप्लवकारी रेखा है, लाखों की मौत का कारण बनेगी तो उसने इमरजेंसी लगवा दिया, जेल में डलवा दिया, सोचा अकंटक राज करुँगी। ये धरती वीरों से खाली नहीं रही। हम लोगों ने वैचारिक आन्दोलन शुरू किया। उसी पार्टी वालों ने लालच दिया कि अध्यक्ष बना देंगे, माफ़ी मांग लो, हमने कहा अरे! हम जेल में जाने के लिए आये हैं, जेल जायेंगे और परिवर्तन करके लौटेंगे। अपने गुरु भाई, गुरु बहनों को भी बहुत मारा-पीटा गया। जब सतसंगियों ने जेलें भर दी तो जंगलों में दूर ले जा कर छोड़ देते थे। महाराज जी ने अत्याचार के कुछ प्रसंग भी बताये। गुरु महाराज को तो बहुत यातनाएं दी गयी। बहुत भारी डंडा-बेड़ी डाल कर तन्हाई वाली कुछ ही फीट लम्बाई-चौड़ाई वाली कैद महीनों तक दी। यहाँ तक कि भोजन-पानी में मिला कर जब देने लगे तो खाना-पीना छोड़ दिए, बहुत दुबले होकर जेल से बाहर निकले थे, बहुत अत्याचार किया। गुरु महाराज तो महापुरुष थे, अपनी शक्ति को दबाये हुए थे। गुरु महाराज जी समरथ थे लेकिन उन्होंने कितना बर्दाश्त किया संतों की जो मर्यादा रही है पूरा उन्होंने पालन किया। जगत भगत का बैर है, चारों युग प्रमाण। पिछले महापुरुषों को भी बहुत यातनाएं दी गयी थी लेकिन सोना को जब तपाया जाता है तब उसमें निखार आ जाता है।
अच्छे का अच्छा और बुरे का बुरा परिणाम होता है:-
तप से चूके राज मिलत है, राज से चूके नरका। जो राज धर्म का पालन नहीं कर पाता, प्रजा को अपना नहीं बल्कि भेड़-बकरी समझ लेता है, उनका पालन-पोषण नहीं कर पाता, अपना-पराया समझता है, उसके लिए नर्क का दरवाजा खुल जाता है, प्रेत योनी में चला जाता है। देखो! पूरे खानदान का एक जैसा हाल हुआ। वो और उसके दोनों बेटे अकाल मृत्यु में गए, चीथड़े उड़ गए। मैं किसी का बुरा नहीं चाहता हूं, याद दिला रहा हूं कि, अच्छे का परिणाम अच्छा और बुरे का बुरा परिणाम होता है। 23 मार्च को गुरु महाराज जेल से निकले थे, इसलिए इस दिन मुक्ति दिवस मनाया जाता है, में आप सबको याद दिला रहा हूं, आप कोई वैसा काम मत करना जिससे वैसी सजा आपको भी मिल जाए।