धर्म कर्म: इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि सतसंग सुनने और भजन, ध्यान, सुमिरन करने की आदत डालो। जो नाम दान मिला है, उसके हिसाब से आप तरक्की करो। अगर इसको करने लग जाओगे तो दुनिया में भी तरक्की हो जाएगी। जिस चीज की इच्छा होती है आदमी की, वह इच्छा पूरी हो जाती है। जो इच्छा किन्हीं मन माही, गुरु प्रताप कछु दुर्लभ नाहीं। जिस चीज की इच्छा करता है वो मिल जाती है। और नहीं मिलती है तो उधर से मन हट जाता है। वो भी इच्छा पूरी हो गई, जिस चीज की इच्छा खत्म हो गई। अरे भाई फिक्र ही तो होती है कि हमारे पास धन ज्यादा हो जाए, बढ़िया मकान, कपड़ा, खाने का हो जाए और इच्छा हुई कि भोजन आ जाए, दो तरह की सब्जी, रोटी, चावल आ जाए, कुछ खीर, मीठी चीज भी आ जाए। अब नहीं मिला तो इच्छा खत्म हो गई। अब कोई अगर बना के लाये, रख दे और कहे कि यह लीजिए, खाइए, जो आपकी इच्छा थी तब कहोगे अरे ले जाओ, अब इच्छा नहीं है। क्यों? क्योंकि सूखी रोटी से पेट भर लिया। पेट की जो भूख थी, वो उसी से मिट गई। ऐसे इच्छा ही खत्म हो जाती है। इच्छा पूरी हो गई और इच्छा खत्म हो गई तो दोनों इच्छा पूरी हुई। एक तरह से जिसकी इच्छा हुई कि बादशाह बन जाए, और जिसकी इच्छा समझो खत्म हो गई, उसी के लिए कहा गया कि जिसको कछु न चाहिए, सोही शहनशाह। चाह गई चिंता गई, आपको फिक्र रहती है कि ये हो जाए, वो हो जाए, ऐसा हो जाए, वैसा हो जाए तो क्या होता है? चिंता फिक्र होती है। और चिंता चरती चली जाती है। चरना यानी जैसे जानवर घास खाते हैं तो घास खाते-खाते खत्म हो जाती है। ऐसे ही चिंता फिकर अंदर में व्याप्त हो गई तो शरीर को खा जाती है, खत्म कर देती है, स्वास्थ खराब हो जाता है और चाह खत्म हो गई, चाह गई चिंता गई मनवा बेपरवाह।

शरीर को पाक साफ रखते हुए लगातार सुमिरन ध्यान भजन करोगे तो साधना के सभी अनुभव होंगे

आंखों को बंद करके दोनों आंखों से एक जगह पर दृष्टि को टिकाओ। जब एक जगह पर दृष्टि टिकेगी, आंखों के बीच चमकीला होता है, उसमें चारों तरफ से रोशनी निकलती है, एक जगह पर टकराएगी, पावर उसमें आ जाएगी। टॉर्च में जो बल्ब लगा रहता है, तारों-तारों में बल्ब रहता है, उससे रोशनी निकलती है। और एक जगह पर ऐसी जाती है जिससे उसका फोकस दूर तक बन जाता है। ऐसे ही अंदर में यह पुतलियां चमकीली है। जब उस पर पड़ता है तब वह बिंदु बन जाता है, पावर बढ़ जाता है। तब हल्की-फुल्की बाधा कर्म सब कट जाते हैं। जैसे कोई कपड़ा लगा दिया जाए, कपड़े के ऊपर कम पावर का टॉर्च जला दिया जाए तो रोशनी दूर तक नहीं जाती है। उधर कोई बैठा हो तो नहीं दिखाई पड़ता है। और जब उसका पावर बढ़ गया तो तब उस पार भी दिखाई पड़ने लगता है। ऐसे ही इसमें भी होता है। तो बराबर आवाजों को पकड़ने के लिए इधर से ध्यान को हटा करके आवाज को पकड़ने का अभ्यास करते रहना है। अभ्यास करते-करते जब जीवात्मा के कान का पर्दा हट जाता है तब वह आवाज सुनाई पड़ने लगती है। तो अनहद से ही शुरू होती है, छोटी आवाजों से सुनाई पड़ती है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि ऊपर की आवाजें सुनाई पड़ जाती है, कर्मों का ही चक्कर होता है। जिसके जैसे कर्म होते हैं, उसी हिसाब से किसी को बिल्कुल साफ सुनाई पड़ता है, किसी को मिलौनी आवाज सुनाई पड़ती है। बाद में छंटती है। यह तो कर्मों के ऊपर होता है। जो पूर्व जन्म के कर्म है, आपके प्रारब्ध, संचित कर्म वह इससे कटेंगे। जब लगातार सुमिरन ध्यान भजन जब आप करोगे तो यह कर्म आपके कटेंगे, आवाज भी आपको सुनाई दिखाई पड़ेगा, प्रभु का दर्शन इसी मानव मंदिर में लोगों को हुआ है। आपको भी हो सकेगा लेकिन जब लगातार करोगे। और इस शरीर को जब पाक साफ रखोगे, इसको जब गंदा नहीं करोगे।

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