धर्म कर्म: जीते जी प्रभु के दर्शन का मार्ग नामदान बिना किसी जाति धर्म मजहब के भेदभाव के स्त्री-पुरुष-किन्नर सबको देने वाले, प्रभु के पास पहुंचाने वाले, अपने भक्तों को देने में कभी हार न मानने वाले, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि आदमी-औरत के शरीर के भी लक्षण होते हैं। उसके शरीर के बनावट को देख कर के, हस्त रेखाओं को देख कर के लोग बता लेते हैं कि यह दयालु है, यह क्रूर है, यह अपराधी है, यह भोगी है, यह लोभी है, सारे लक्षण शरीर में रहते हैं।

जो स्त्री और पुरुष में नहीं हैं उनके अन्दर भी परमात्मा को पाने का रास्ता है

माता-पिता के संयम नियम से ही बच्चे पैदा होते हैं और माता के संयम से ही ये बच्चे पलते पहुंचते हैं। तो आंख कान न बना, बच्चा पैदा करने का नीचे का सुराख न बने लेकिन जिससे जीवात्मा अंदर डाली जाती है और जिससे यह शरीर चलता है, वो रास्ता किसी का बंद नहीं है। वह रास्ता सबके पास है तभी तो यह शरीर चलता है। उंगली कम हो जाए, पैर छोटा हो जाए, हाथ न हो, आंख न बन पावे लेकिन वह रास्ता बंद नहीं होता है। तो जो स्त्री-पुरुष में भी नहीं है, वह तीसरा जिनको शिखंडी कहते हैं, वो भी हो लेकिन उनके अंदर भी उस प्रभु के पाने का, अपने घर, अपने मालिक के पास जाने का, परलोक बनाने का रास्ता है। तो रास्ता सबके अंदर में है, बस वही है कि कोई बताने वाला हो। धार्मिक ग्रंथ उठा के देखो, महात्मा लोग ही बताए हैं जिनको सन्त सतगुरु कहा है। मुसलमान फकीरों ने मुर्शद ए कामिल, स्पिरिचुअल मास्टर कहा है। तो रास्ता बताने वाले इस धरती पर हमेशा रहे और लोगों को बताए भी और रास्ता बताए ही नहीं है मदद करके भगवान से मिलाए, देवी-देवताओं का दर्शन कराए भी हैं और जब शरीर छूटा तो उस प्रभु के पास पहुंचा रहे हैं।

कर्म करोगे तो मिलेगा मजदूरी वो नहीं रोकता है

सकल पदार्थ है जग माहीं, कर्म हीन नर पावत नहीं। जो कर्म नहीं करता, उसको कुछ नहीं मिलता है। हाथ-पैर नहीं डुलाता तो थाली में रखा भोजन थाली से उछल के मुंह में नहीं जाता है। उसको भी हाथ चलाना पड़ता है, कर्म करना पड़ता है। तो यह कर्म प्रधान देश संसार है। कर्म तो करना पड़ेगा। जैसे हाथ पैर आंख कान से इस समय कर्म करते हो, रोटी पानी का इंतजाम, बाल-बच्चों की सेवा, ऐसे कुछ अंदर में पाने के लिए, प्रभु को पाने के लिए, देवी-देवताओं का दर्शन अंदर में करने के लिए, कर्म तो करना पड़ेगा। कर्म करोगे तो मजदूरी मिलेगी। वो नहीं रोकता है। यहां के तो ठेकेदार अगर बेईमान निकल गए तो मेहनत कराते हैं, मजदूरी देते ही नहीं है। लेकिन वो नहीं रोकता है। 10 मिनट करोगे तो 10 मिनट का फल मिल जाएगा। 15 मिनट, एक घंटा, दो घंटा जितना करोगे, उतना मिलेगा। वो देने में कोताही नहीं करता है, गुरु कभी कोताही नहीं करते हैं। धरनी झहलो देखिए, तहलो सबै भिखार, दाता केवल सतगुरु, देत न माने हार। जब वो देने लगते हैं तो हार नहीं मानते हैं, चाहे दुनिया की चीज हो, चाहे अध्यात्म की चीज हो लेकिन लेने वाला पात्र बन जाए, लेने के, रखने के काबिल बन जाए तो उसको दे देते हैं।

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