धर्म कर्म: बाबा जयगुरुदेव जी महाराज वर्ष 2007 में बशीरतगंज, जिला उन्नाव में सतसंग मंच से अपने उत्तराधिकारी की घोषणा सार्वजनिक तौर पर करके गए, जिनको अपनी पूरी पॉवर, पूरी दया दे कर के गए, और सबको कई बार समझा कर गए कि वक़्त के गुरु ही संभाल करते हैं, उन्ही से मिलेगा जो मिलेगा, जमीन-जायदाद, मिट्टी-पत्थर के मंदिर, और किसी भी भूल-भ्रम में मत फंसना, ऐसे बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, वक़्त के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव जी) जाने से पहले मुझ (वक़्त गुरु बाबा उमाकान्त जी महाराज) नाचीज के लिए यह कह कर गए थे कि ये पुराने की संभाल करेंगे और नयों को नाम दान देंगे। गुरु की पहचान अंदर से होती है। अगर अंदर में पहचान नहीं हो पा रही तो कहा गया-वक्त गुरु को खोज तेरे भले की कहूं। जब सन्त इस धरती से जाने लगते हैं चार्ज दूसरे को दे जाते हैं। यह कोई जरूरी नहीं है कि जिस जीव को अपनाया, वह समझ जाए, इस काल और माया के देश में भटकाव न आवे। भटकाव अगर आ गया तो फंस जाता है तब कई जन्मों तक उसको मनुष्य शरीर मिलता रहता है, (इसी मृत्युलोक में) पड़ा रह जाता है। तो वो एक-दूसरे को चार्ज देते हुए चले जाते हैं। फिर उन (वक़्त गुरु) के पास जाना जरूरी होता है। मोटी बात समझो, जैसे कहीं रास्ते में कोई कम पत्तियों टहनियों वाले पेड़ की छाया में खड़े होने पर आपको अच्छा लगने लगा, धूप से बचत हो गई लेकिन अगर कहीं आगे बड़े चौड़े पत्ते, घनी छाया वाला बड़ा पेड़ दिखाई दे रहा है, वहां अगर खड़े हो जाओ तो ज्यादा छाया, ज्यादा मदद मिलेगी, ज्यादा थकावट दूर हो जाएगी, रास्ता तय होने में आसानी हो जाएगी।
वक़्त के गुरु, डॉक्टर और नाम की जरूरत पड़ती है
जो धार्मिक लोग होते हैं, वह किसी न किसी नाम से भगवान को पुकारते हैं। आप जिस नाम से भगवान को पुकारते होंगे, उस पर आपका विश्वास होगा। लेकिन आपको यह बता दें कि वक्त के नाम से ज्यादा फायदा होता है। वक्त के गुरु, डॉक्टर, नाम, वैद्य की जरूरत होती है। जैसे आपके पिताजी को पढ़ाने वाले मास्टर जी, रोग दूर करने वाले डॉक्टर, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, अगर आप कहो कि हम अपने बच्चों को भी उन्ही मास्टर जी से पढ़ा लेंगे, बिमारी उन्ही डॉक्टर से दूर करा लेंगे तो कैसे होगा? इसलिए वक्त के गुरु, डॉक्टर, मास्टर, नाम की जरूरत होती है। यह (वक़्त का) नाम याने वर्णनात्मक नाम बदलता रहता है। लेकिन ध्वन्यात्मक (पांच) नाम हमेशा से वही चल रहा है। मैं आपको बताऊंगा, समझाऊंगा नहीं तो आपको विश्वास कैसे होगा।
सन्तों की यह परंपरा रही है
हमारे गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव जी) ने बहुत से लोगों को रास्ता बताया, रास्ते पर चलाया और मंजिल तक पहुंचा दिया। लेकिन सन्तों की यह परंपरा रही है कि जाने से पहले किसी न किसी को कह कर के गए हैं। मुझ नाचीज को जो हुकुम देकर के गए, उसका मैं अक्षरशः पालन करने में लगा हुआ है। गुरु के आदेश का पालन ही गुरु भक्ति होती है। गुरु भक्ति पहले करे, पीछे और उपाय।