धर्म-कर्म: प्रभु कृपा प्राप्ति के लिए मूल बातों को बताने समझाने वाले, विशेष रूप से बच्चों के लिए चिंतित, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अपने आश्रम पर आयोजित साप्ताहिक सतसंग में बताया कि, बच्चों को अच्छा खिला दो, पहना दो, पढ़ा-लिखा करके नौकरी काम सिखा करके कमाने का इंतजाम कर दो, केवल यही गृहस्थ का धर्म नहीं है। गृहस्थ का धर्म है कि उनको दया सिखाओ जिससे वो भी दया सिंधु को, रहमान को पा सकें, उसका दर्शन दीदार कर सके, इसीलिए मनुष्य शरीर मिला है। अगर बच्चों को दया नहीं सिखाओगे तो ज्ञान नहीं होगा, सतसंग में नहीं लाओगे तो उन्हें संगदोष हो जाएगा। जैसा साथ करो वैसा असर आता है। जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन। जैसा पिये पानी वैसा होय वाणी।। आजकल बच्चों का खाने-पीने पर कोई परहेज है? घर से निकल गए, साथी मिल गए, फैशन में होटल में जा रहे हैं बड़ा आदमी बनना दिखाने के लिए। वहां क्या बन रहा है, कैसा है, कुछ पता है? साथी भी ऐसे मिल जाते हैं, नशे की आदत डाल देते हैं।
टॉफी मिठाइयों में गांजा, उससे कई गुना तेज नशे का एसेंस, अर्क निकालकर डाल देते हैं:
इस समय अगर बच्चों का ध्यान नहीं रखा गया तो ऐसे-ऐसे नशे चल गए हैं कि मालूम ही नहीं पड़ता है कि इसमें नशा है या नहीं। आप तो कहोगे बच्चा टॉफी, बिस्कुट, पान, सुपारी खा रहा है लेकिन उसमें क्या पड़ा हुआ है? उसमें क्या लगा हुआ है? वो किस चीज का बना है? आपको क्या पता। पहले गांजा पीने वालों को गंजेड़ी कहते थे, कहते थे- गंजेड़ी यार किसी के नहीं होते, इनका साथ करने से कोई फायदा नहीं है। अब तो ऐसी-ऐसी टॉफी मिठाइयां चीजें चल गई जिसमें गांजे का, उससे कई गुना तेज नशे का रस, एसेंस, अर्क निकालकर डाल देते हैं। कई बेईमान लोग सरसों के तेल, डालडा घी में देसी घी का एसेंस अर्क डाल देते हैं जिससे वह भी देसी घी जैसा लगने लगता है।
बगैर उस टॉफी बिस्किट के कुछ दिन बाद बच्चा जिंदा नहीं रह सकता:
अभी तो आप देखोगे कि बच्चा टॉफी बिस्किट ही खा रहा है लेकिन कुछ दिनों बाद उस टॉफी बिस्किट के बिना बच्चा जिंदा नहीं रह सकता। इन सब चीजों पर आप लोग ध्यान नहीं रखते हो। फिर जब आपसे उसे पैसा नहीं मिलेगा तब वो घर में चोरी करेगा, जेवर बेचेगा। जब घर का पूरा माल साफ हो जाएगा तो गैंगों में भर्ती हो जाएगा। जिस दिन पकड़ा जाएगा उस दिन आपको पता चलेगा। रहो सावधान। इस समय नशाखोरी विदेशों में, कुछ देशों में प्रतिशत में तो कम भी है लेकिन भारत में बहुत ज्यादा व्याप्त हो रही, बढ़ती चली जा रही। आप सोचो नशे में कोई कुछ कर सकता है? कुछ नहीं। बच्चों की बर्बादी पतन कहां से होता है? पहले सिनेमा था, देखने का असर। फिर टीवी आया और अब तो जेब-जेब में टीवी यानी मोबाइल हो गए।