धर्म कर्म: थ्योरी से आगे धार्मिक किताबों का प्रैक्टिकल करवाने वाले, करोड़ों ब्रह्मा, विष्णु, महेश को देखने का तरीका बताने वाले, जीवात्मा के कल्याण के इस मार्ग नामदान को देने के एकमात्र अधिकारी, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि आंख बंद करके अंदर में देखने के लिए (तरीका) बताऊंगा और मन को रोक करके देखने की कोशिश करोगे। मन बना लोगे कि हमको कुछ दिखाई पड़ना चाहिए, जब आपको विश्वास हो जायेगा, आपकी श्रद्धा जग जाएगी तब आपको कुछ दिखाई पड़ेगा। और ऐसी-ऐसी चीज, लीलाएं दिखाई पड़ेंगी, ऐसे रामलीला जो आप देखे नहीं हो, ऐसे सुन्दर पेड़-पौधे, मणियों-मोतियों के चबूतरे आपको दिखाई पड़ेंगे जो यहां है ही नहीं। तो उस दिव्य रूप को जब देखोगे, जिस लोक में जाओगे वहां के लोकों को देखोगे, तब आप मस्त हो जाओगे। ये आपका मृत्यु लोक है। इसके ऊपर जब जाओ तो देव लोक, करोड़ों दुर्गा, करोड़ों शंभू, ब्रह्मा लोक, विष्णु लोक, शिव लोक है, इनका सब लोक है। इनकी मां का आद्या लोक है। उसके ऊपर में इनके पिता ईश्वर जिनको कहा गया उनका लोक है। ब्रह्मलोक, पारब्रह्म लोक, सतलोक, अलख लोक, अगम लोक, अनामी लोक आदि इनके लोक है। जैसे विश्व में भारत के साथ-साथ और भी देश हैं, ऐसे ही ऊपर में भी ये लोक हैं। तो जिस लोक में आप जाओगे, वहां उन्ही जैसे आपको सब दिखाई पड़ेंगे। गोस्वामी जी ने कहा, उदर माझ सुनु अंडज राया। देखेउँ बहु ब्रह्मांड निकाया।।

बहुत सारे ब्रह्मांड मैंने देखे, ब्रह्मा ही ब्रह्मा देखा, कोटि चतुरानन गौरीसा, मैंने करोड़ों शिव देखे। तो जब उन लोकों की सुंदरता को देखोगे, उनका दर्शन करोगे, मस्त हो जाओगे, खुशी से पागल हो जाओगे जैसे मीरा पागल हो जाती थी। पग घुंघरू बांध मीरा नाची। मस्त हो जाती थी तो नाचने लगती थी। जैसे अन्य लोग हैं, देखो चैतन्य प्रभु हैं, और भी लोग हैं, थोड़ा भी आभास हुआ, मस्ती आ गयी तो वो मस्त हो जाते थे, कोई करताल लेकर नाचने लगता था। कोई जो कृष्ण लोक तक, ब्रह्म लोक तक, निरंजन लोक तक ही पहुंच जाता था तो वहां का दृश्य, वहां का गाजा-बाजा सुन कर के उसी तरह से मस्त हो जाता था। ऐसे ही आपके अंदर भी मस्ती आएगी, (और यदि) दूसरों को बताने लगोगे और जैसे ही बताओगे तैसे ही वो बंद कर देगा। और जब बंद हो जाएगा तब रात दिना मोहे नींद न आवे, भावे अन्न न पानी। मीरा गली-गली में घूमती थी कि कोई हमारा ये दर्द मिटा दे। प्रियतम प्रभु की याद इस तरह से सता रही है कि जैसे तीर साल रहा हो। जैसे गोली ऐसे घूम के जाती है, जैसे तीर अंदर जाता है, इस तरह से दर्द उठ रहा है। तो बताना मत नहीं तो बंद हो जाएगा। पागलों की तरह से घूमोगे इधर-उधर, परेशान रहोगे, बोल भी नहीं पाते हैं। हम लोग तो (काफिले में) चलते रहते हैं तो मिल जाता है कोई न कोई। अब वो बोलते तो कुछ नहीं। आंखों से आंसू निकलते रहते हैं। हमारे साथ में जो लोग रहते हैं, कहते हैं, अरे कहो-कहो, क्या बात है? बोलेगा भी तो कहेगा कि ये (गुरु महाराज परम पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज) जानते हैं, अब बोले कैसे? मना किया गया था (कि अंदर में जो दिखाई सुनाई पड़े उसे किसी को बताना मत)।

अंतर में ऊपर लोकों का प्रकाश खत्म नहीं होता है

ऐसे अंदर में ज्योति जल जाती है। श्री गुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियँ होती।। जब गुरु की दया हो जाती तब प्रकाश ही प्रकाश हो जाता है। और वो प्रकाश कभी खत्म नहीं होता है। परम प्रकाश रूप दिन राती, नहीं कछु चाहिए दिया घृत बाती। दिया चिराग की कोई जरूरत नहीं पड़ती है। तो वह प्रकाश ऊपरी लोकों में है। जैसे ही यह पिंडी शरीर छूटता है, जीव अंड लोक में जाता है, जहां देवी-देवता रहते हैं, वह प्रकाश मिलना शुरू हो जाता है जो धीरे-धीरे बढ़ता-बढ़ता, समझो बहुत बड़े प्रकाश में यह जीव चला जाता है। तो अंदर में प्रकाश हो जाता है। देखो यहां अभी दिन में रोशनी है, आंखों से देख रहे हो लेकिन आंख बंद कर लो तो यहां दिन में भी अंधेरा है। लेकिन आंख बंद करने के बाद जब वो प्रकाश मिलता है, जब जीवात्मा शब्द से जुड़ती है, शब्द में जो प्रकाश (रोशनी) है, वो शब्द जब जीवात्मा को खींच कर के ऊपरी लोकों में ले जाता है तब बिना भूमि एक महल बना है, तामें ज्योति अपारी रे, अंधा देख-देख सुख पावे, बात बतावे सारी रे। जिन्होंने देखा, उन्होंने लिख दिया। तो यह जीवात्मा प्रकाश की नगरी में चली जाएगी। बहुत से सन्त जो आए, उन्होंने इस प्रकाश को दिखाया है और आप भी देख सकते हो, उस नगरी में जा सकते हो। गृहस्थ आश्रम में रहते हुए, बाल-बच्चों का देखरेख करते हुए, उनका पिछले जन्मों का लेना-देना, कर्जा अदा करते हुए, आप जा सकते हो। जो गुरु महाराज के नामदनी हो, आप अगर ध्यान भजन सुमिरन जो उन्होंने बताया है, करने लग जाओ, गुरु का रूप ही अंतर में आपको दिखाई पड़ने लग जाए तो गुरु ही आपका हाथ पकड़ कर के और ले जा कर के वहां पहुंचा देंगे। तो बराबर सुमिरन ध्यान भजन आप लोग करो। गुरु आदेश का पालन ही गुरु भक्ति है।

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