धर्म-कर्म: इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि सतसंग से ही सारी जानकारी होती है। यह धार्मिक किताबें, यह रामायण किसने लिखा? रामचरित मानस – राम का चरित्र जो अंदर हो रहा है, मानस में जो अंतर में 24 घंटे हो रहा है उसको किसने लिखा?गोस्वामी जी महाराज ने लिखा यहीं पर नीचे बैठकर प्राप्त किया। वो 25 साल की उम्र में ही साधना में पारंगत हो गए थे।अपनी आत्मा को परमात्मा तक पहुंचा दिया था। पूरी शक्ति उनके अंदर में आ गई थी। फिर उन्होंने अंतर में जो राम का चरित्र देखा वो बताया।
गोस्वामी जी महाराज ने 4 राम का भेद बताया
महाराज जी कहा कि गोस्वामी जी महाराज ने बताया कि एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट-घट में लेटा। एक राम का सकल पसारा, एक राम सब जग से न्यारा।। दशरथ जी के पुत्र राम थे। मनुष्य शरीर में ही थे और यही राज का काम भी देखते थे। शरीर में ही थे लेकिन शक्ति उनको ऊपर से मिली थी। ईश्वरलोक से वह आए थे। उनको जो शक्ति मिली थी वह कुछ समय तक के लिए ही वह काम कर सकती थी। जब तक उनको काम करना था, व्यवस्था बनानी थी, रावण को मारना था। जो अत्याचार पापाचार कर रहा था, उसको मारना था। रावण के सामने बड़े-बड़े देवता लड़ाई के मैदान में ठहरते नहीं थे। रावण को मार कर के जब लौट कर आए तब लोग खुश हो गए। शुरुआत कहां से हुई खुशी की? जब उन्होंने मर्यादा का पालन किया।
राम भगवान ने पिता के आदेश का पालन किया तो मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहा लोगों ने
महाराज जी ने बताया कि राम भगवान ने पिता के आदेश का पालन किया। पिता ने रघुकुल की रीत के मर्यादा का पालन किया कैकेई के कहने पर। उन्होंने 14 वर्ष का राम को बनवास दे दिया, जंगल भेज दिया। राम लौट कर के आए थे जब पढ़कर के, दुनिया की जानकारी की विद्या सीख करके जब आए थे, उस समय राजगद्दी की तैयारी शुरू हो गई थी। अब आप समझो जब इन्होंने राजगद्दी पर ठोकर मारा तब यह मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहे गए। जब रावण को मार कर के आए तब भगवान राम लोगों ने कहा। इनके राज में किसी भी तरह की कोई तकलीफ नहीं हुई, समय पर जाडा, गर्मी बरसात हुई।
पहले लोगो की नीयत सही थी, नीयत से ही बरकत होती है
महाराज जी ने बताया कि पहले मधुमक्खियों के छत्ते ऐसे पेड़ों पर लगे रहते थे। लोग मक्खियों को हटाकर के मधु को निकाल लेते थे। कहते हैं ना लोग नीयत से बरकत होती है। पहले उन्होंने नीयत सही किया। लोगों की याद को दुरुस्त किया। याद जब दुरस्त हुई तो बरकत मिलना शुरू हुई। धन-धान से यह पृथ्वी पूर्ण हो गई थी राम के राज्य में।
राम भगवान की मर्यादा बनाये रखो, उनकी मर्यादा न जाने पाये
अब यह वही भूमि है जहां कोई कहता है कि हमारी जेब कट गया, कोई कहता हमारी चैन कट गई इस भारत भूमि पर तो लोगों की श्रद्धा कहां से रह जाएगी? यहां जितने भी अयोध्यावासी हो, जितने भी पंडित-मुल्ला-पुजारी हो, जितने भी संस्था के लोग हो, आप लोगों से मेरी यह प्रार्थना है कि सब लोग मिलकर के अपने स्तर से समझा करके, बता करके बैचारिक क्रांति के द्वारा परिवर्तन ला करके या जो भी हुकूमत में जहां पर हो, आप लोग यहां की व्यवस्था को सही कराओ। यह धार्मिक स्थान ही बना न रह जाए। यहां पर जब लोगों का मानव मंदिर गंदा होगा, दिल-दिमाग और लोगों की बुद्धि खराब होगी तो राम की मर्यादा कैसे होगी? कितना भी आप राम का मंदिर बना लो, कितना भी आप रामलीला कर लो, कितना भी आप राम विवाह कर लो, कितना भी आप जन्माष्टमी मना लो लेकिन वह शांति, सुकून और प्रेम जो मिलना चाहिए राम का नाम लेने से राम की मूर्ति देखने से, जो मिलना चाहिए, इच्छा रखनी चाहिए वह नहीं हो पाएगी।प्रेमियों को इस चीज को समझने की जरूरत है कि राम भगवान ने आदर्श कायम किया था।